एब्सिन्थियम (Absinthium 30, 200, Q) Symptoms, Uses & Side Effects in Hindi - Saralpathy

एब्सिन्थियम (Absinthium 30, 200, Q) Symptoms, Uses & Side Effects in Hindi

(Common wormwood) in Hindi होम्योपैथिक दवा, एब्सिन्थियम का प्रयोग- 1. मृगी-रोग में 2. स्त्री-रोग में 3. कानकी बीमारी में 4. हृत्पिण्ड की बीमारी में



एब्सिन्थियम होम्योपैथिक दवा (Absinthium)

एब्सिन्थियम का प्रयोग-
1. मृगी-रोग में
2. स्त्री-रोग में
3. कानकी बीमारी में
4. हृत्पिण्ड की बीमारी में


एब्सिन्थियम का स्रोत/तत्त्व-

Homepathic Medicine Absinthium Sources / Composition in Hindi

अगर आप जानना चाहते है कि एब्सिन्थियम होम्योपैथिक दवा कैसे बनती (तैयार) होती है ? तो यह एब्सिन्थियम एक ( Common wormwood )-पौधा है, उसके फूल और पत्तोंसे मूल- अर्क तैयार होता है। 


एब्सिन्थियम की क्रिया-

मस्तिष्क, मज्जा ( medulla ) और मेरुदण्डमें रक्तकी अधि कता ( कॉनजेस्शन ), मस्तिष्कमें रक्तकी अधिकताकी वजहसे टाइफॉयड ज्वरमें नींद न आना ( फेरिंगटन ), सदीं लगकर आँखोंमें प्रदाह ( आँख आना ), यकृत-प्लीहा बढ़ी हुई मालूम होना-मानो यकृत फूल गया हो, पेट में बहुत वायु जमा होना, वायु-शूलका दर्द ( wind colic ), बच्चोंकी बहुत देरतक रहनेवाली अकड़न, मृगी, मन्दाग्नि (डिस्पेप्सिया ), हरित्पाण्डुरोग (क्लोरोसिस ), गृध्रसी वात ( सायटिका ), कुकुरमुत्ता खानेके कारण जहर का फैल जाना, हमेशा पेशाब लगा रहना और उसमें कड़वी गन्ध आना आदि कितनी ही बीमारियों में इसका हमेशा प्रयोग होता है।


मृगी-रोग में एब्सिन्थियम का इस्तेमाल-

मृगी-रोग आरम्भ होनेके पहले (आरम्भमें) रोगीके सरमें चक्कर आना, आँखोंके सामने कोई मूर्ति दिखाई देती है, कानसे सुन नहीं पाना, कॉपा करना, शरीर सुन्न की तरह मालूम होना और उसके बाद ही अकड़न ( convulsion) आरम्भ होना, दाँती लग जाना, दाँत कटकटाना, दाँतसे जीभ काटना और उस वजहसे महसे खून मिला फेन निकलना। डॉ० एलेनका कथन है-इसमें अकड़न पहले मुंहसे आरम्भ होती है और उसके बाद शरीरके दूसरे-दूसरे अङ्गों में चली जाती है। वे यह भी कहते हैं कि-मृगीके दौरेके समय इसका मूल अर्क ( टिंचर ) १ बूंद, रोगीकी जीभपर टपका देनेसे बहुत भयानक अकड़न भी बहुत थोड़े समय में दूर हो जाती है। यदि बच्चोंकी अकड़न बहुत देर तक रहे तो इससे बहुत अधिक फायदा होता है। डॉ. हेल्बर्ट का कथन है-जहाँ बीमारी हल्की हो और रोगी एकदम बेहोश न हो जाय, वहाँ इससे अधिक फायदा होता है।


मृगी-रोग में प्रयुक्त होने वाली होम्योपैथिक दवाएं-

1. एमिल नाइट्रेट 6–

बीमारीके दौरेके समय ५-७ बूंद दवा रुमालमें डालकर सुघानेपर बेहोशीका दौरा घट जाता है । 


2. आर्टिमिसिया वलगैरिस ६x-

एक बार बेहोशी हुई, फिर रुकी और फिर बेहोशी आयी, इस तरह एकके बाद दूसरी बेहोशीका दौरा होना इसके बाद रोगीका सो जाना (कमिकी वजहसे होनेवाली अकड़नमें भी इससे लाभ होता है)।


3. ऐसिड कार्बोल ६-

यदि किसी भी दवासे लाभ न हो तो इनका प्रयोग काना चाहिये।


4. ब्यूफो राना २x, ३-

दौरा आरम्भ होनेके पहले रोगी खब जोरसे चिल्ला उठे, क्या कहता है ठीक-ठीक समझमें नहीं आवे, जननेन्द्रियकी उत्तेजना पीडाका कारण हो अथवा जननेन्द्रियसे सुरसुरी ( aura) आरम्भ होकर मृगीका दौरा होता हो, तो इससे फायदा होगा। दोरा होनेके बाद सो जाना भी इसका एक लक्षण है। डॉ. लिपिका कथन है-डर जानेपर या स्त्रियोंको ऋतुके समय दोरा होनेपर, और दिनकी अपेक्षा रातमें यदि अधिक बार मृगीका दौरा हो तो इससे जल्द उपकार होता है। इसके फिटका वेग (aura) कितनी बार अग्रखण्डके स्थानसे आरम्भ होता है।


5. कैलि-ब्रोम ३-

इस दवासे बीमारी आराम होती है या नहीं, सन्देहकी बात है ; पर इससे कितनी ही बार फिट और बीमारी बहुत जल्द घट जाती है (only palliative in true epilepsy )। कोई-कोई कहते हैं कि क्रमशः मात्रा बढ़ाकर सेवन करनेसे कुछ दिनोंके लिए दोराका होना बन्द तो रहता है, पर अन्तमें बीमारी और भी कड़ी हो जाती है।


6. जिङ्कम और हायोसियामस-

अवस्था प्राप्त बालकोंकी बीमारीमें लाभदायक है।


इनके अलावा-

मृगी-रोग हेतु अन्य होम्योपैथिक दवाएं-

कूप्रम, आर्जेण्ट-नाइट्रिक, इग्ने, हाइड्रोसियानिक ऐसिड, बेल, ग्लोनोयिन, कैल्के, सल्फ, काकु, साइलि ( साइलिसियामें भी बीमारीका झोंका अग्रखण्डके स्थानसे आरम्भ होता है ) आदि भी मृगी-रोगकी दवाएँ हैं।


यदि स्त्रियोंको ऋतुस्रावके समय मृगीका दौरा हो तो-आर्जेण्ट नाइट्रिकम, न्यूफो, इनैन्थि (Enanthe ), प्लम्बम, सलफर आदि दवाएँ फायदा करती है। अगर अनियमित और थोड़े ऋतुस्रावके साथ बीमारी हो तो-आर्टिमिसिया, सिमिसिफ्यूगा; और पहली बार ऋतु होनेके समय रोग हो तोकॉस्टिकम आदि लाभदायक हैं। -


स्त्री-रोग में एब्सिन्थियम का प्रयोग-

दाहिनी ओरके डिम्बाशयमें तेज दर्द (यह लक्षण पैलेडियम और एपिसमें भी है ), हरित् रोगवाली ( chlorosis) स्त्रियोंकी बीमारीमें ( इस बीमारीका लक्षण यह है कि रोगिणीका चेहरा हरा दिखाई देता है, बहुत कमजोर हो पड़ती है, कलेजा धड़कता है )-ऐन्सिन्थियम विशेष फायदा करता है। -


पेशाबकी बीमारी में एब्सिन्थियम का प्रयोग-

पेशाबकी परीक्षा करनेपर यदि उसमें अण्डलाल (albumen ) दिखाई दे, तो ऐन्सिन्थियम फायदा करेगा। इसमें पेशाब का रङ्ग नारङ्गीकी तरह और उसमें घोड़ेके पेशाबकी तरह गन्ध रहती है (ऐसिडनाइट्रिक अध्याय देखिये ), पेशाब बहुत जल्दी-जल्दी लगता है।



कानकी बीमारी में एब्सिन्थियम का प्रयोग-

किसी तरहका भी सर-दर्द आराम होनेपर यदि कानमें पीब हो जाये, तो-ऐन्सिन्थियमसे लाभ होगा।


हृत्पिण्ड की बीमारी में एब्सिन्थियम का प्रयोग-

हृत्पिण्ड की गति समान नहीं रहती, इसके अलावा-हृत्पिण्डका इस तरह जोरसे धड़ाम-धड़ाम चलना कि पीठकी ओरसे भी उसके स्पन्दनकी आवाज सुन पड़े। नाड़ी पहले तेज रहना फिर बादमें धीरे-धीरे क्षीण व धीर होती जाना।


सदृश-आर्टिमिसिया, ऐसिड हाइड्रो, साइक्यूटा, सिना इत्यादि । क्रम-१, ६ शक्ति।

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