ऐसिड फाँस के फायदे | Acid Phosphoricum Q, 30, 200 1M & 10M Uses in Hindi
ऐसिड फाँस
[फॉस्फोरस और ऑक्सिजन मिलाकर तैयार होती है-१० भाग डिस्टिल्ड वाटरमें एक भाग शुद्ध ऐसिड मिलाकर उसका १० भाग ६० भाग अलकोहलमें मिलानेपर-२x शक्ति तेयार होगी]
यह साधारणतः मूत्रयंत्र, स्नायुमंडल और आँतों पर ही अधिक प्रभाव पहुँचाती है। धातुदौर्बल्य और वीर्यक्षय-जनित बीमारियाँ, बहुत अधिक इन्द्रिय-चालन जैसे- हस्तमैथुन, स्वप्नदोष इत्यादि कारणों से बालकों को नाना प्रकार की बीमारियाँ हो जाती है और वे धीरे-धीरे इतने कमजोर हो पड़ते हैं कि बोलनेमें भी कलेजे में कमजोरी मालूम होती है। कितनों ही का कथन है कि ऐसे मौके पर यह मंत्रशक्ति की तरह काम करती है। स्टैनम नामक दवामें भी छाती में कमजोरीका लक्षण है, पर यदि यह शुक्रक्षयके कारण हो अथवा स्वप्नदोषके कारण, या पाखाना-पेशाब के समय जोर देनेके कारण शुक्र निकलनेकी वजहसे ही हो, उसमें-ऐसिड फॉस उपयोगी है। ऐसे मौके पर प्रायः ऐसा दिखाई देगा कि रोगी हर वक्त उदास रहता है, उसके सिरमें चक्कर आता है, शरीर काँपता है, लिङ्ग शिथिल हो जाता है। पुरुषत्व घट जाता है, लिङ्गमें हो तो कड़ापन बिलकुल ही नहीं आता।
चायना-यह भी कमजोरीकी बहुत बढ़िया दवा होनेपर भी यदि बहुत दिनोंसे शुक्रक्षयके कारण बीमारी हो तो-ऐसिड फॉस २x और ३x निम्न डाइल्यूशन (क्रम) या ऐसिड फॉस ही अधिक उपयोगी है।
ऐसिड फाँस में पहले मानसिक दुर्बलता होती है, फिर उसका आक्रमण होता है (म्यूरियेटिक ऐसिडके विपरीत); जो सब युवक जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं, i जिन्हें बहुत ज्यादा शारीरिक और मानसिक परिश्रम करना पड़ता है, उनके लिये यह अधिक उपयोगी है। किसी नयी बीमारीके कारण स्वास्थ्य-भङ्ग होनेपर तथा बहुत दुःख, बहुत प्रेम प्राप्त न होने या शरीरके ओजवाले पदाथौंका क्षय हो जानेके कारण शरीर नष्ट हो जानेकी सम्भावना हो तोइसे स्मरण करना चाहिये। -
ऐसिड फाँस रोगियों के चरित्रगत लक्षण:
(१) न्युरैस्थीनिया ( स्नायु-दौर्बल्य ) और नर्वस-डिबिलिटी (स्नायुदौर्बल्यकी बीमारी);
(२) निद्रित अवस्थामें और पेशाब के समय या पाखाने 3 में वेग देने के बाद अनजान में वीर्य निकल जाना (सेलिक्स नाइग्राके समान )
(३) अण्डकोषका फूलना और दर्द ;
( ४ ) अतिरज, अधिक दिनों तक सन्तानको स्तनसे दूध पिलाना, श्वेतप्रदर, प्रमेह-स्राव इत्यादि कारणोंकी वजहसे बहुत कमजोरी;
(५) थोड़ी ही उमर में केश पक जाना ;
(६) बिना चीनीका बहुमूत्र ( डाँ० कोपरथायेटका कहना है कि चीनी जाने वाले बहुमूत्र की भी यह अमोघ दवा है );
(७) पेशाब दूध की तरह दिखाई देना, उसके साथ एल्बूमेन (अण्डलाल) जाना और बहुत जल्द सड़ने लगना; बिना दर्द का पुराना अतिसार और उससे कमजोरी न आना ;
(८) लैरिञ्जाइटिस ( स्वरयत्रका प्रदाह), ट्रेकियाइटिस ( टेंटुआका प्रदाह ), ब्रॉङ्काइटिस ( वायुनलीका प्रदाह) इत्यादि बीमारियोंमें छातीके निचले भागमें सुरसुरी होकर खाँसी आना, खाँसी सन्ध्या में और सोनेके बाद बढ़ना, सवेरे बलगम निकलना-जिसका स्वाद नमकीन होना ; (९) फेफड़ेकी बीमारीमें कलेजेके भीतर बहुत कमजोरी मालूम होना ;
(१०) लम्बर-वर्टेब्राका कैरीज ( कटि-मेरुदण्डीय अस्थि-क्षय रोग);
(११) हिपज्वायण्ट ( कूल्हेकी सन्धि ) के रोग, ग्रन्थियोंकी दर्द-रहित सूजन और पैरका जखम ( atonic );
(१२) हस्तमैथुनजनित युवकोंके व्रण, रक्तस्फोटक ;
(१३) पल्सेटिलाकी तरह कोमल प्रकृति ;
(१४) टाइफॉयड सान्निपातिक ज्वर), टाइफस-ज्वर (मोह-ज्वर) में बेसुधकी तरह पड़ा रहना, पुकारनेपर भी जवाब नहीं देना ( पर जब जागता है तब अच्छी तरह ज्ञान रहता है);
(१५) शरीरमें चींटी रेंगनेकी तरह सुरसुरी मालूम होना; ;
(१६) गठिया-वातकी तरह दर्द ;
(१७) सिर-दर्द-माथेके ऊपरी भाग में दर्द, दबाव मालूम होना, कानमें भों-भों शब्द ;
(१८) नाक से रक्तस्राव ;
(१६) रक्त-स्फोटक। चीनी के साथ ( with sugar ) और बिना - बहुमूत्र और काइल्यूरिया- चीनी का ( diabetes insipidus ) दोनों ही तरह के बहुमूत्र में-ऐसिड फॉस लाभदायक है।
बहुमूत्र-
रोगी को रात में बहुत बार पेशाब करने के लिये उठना पड़ता है, रात ही को पेशाब ज्यादा होता है, तेज प्यास, धोरे-धीरे जीर्ण-शीर्ण और कमजोर हो पड़ता है ( डॉ० रा जेसका कहना है-स्नायु-दौर्बल्य के कारण पैदा हुए बहुमूत्र रोगमें ही यह अधिक लाभदायक है ), दूधकी तरह सफेद या खड़िया-घुले पानी जैसा पेशाब आता हो तो उसमें भी यह लाभदायक है (वायोला ऑडोरेटा देखिये )। आयोडम और कैल्केरिया कार्बमें भीखड़िया-घुले पानी जैसा पेशाब होनेका लक्षण है, पर उनके धातुगत लक्षण रहने चाहिये। डॉ० जारका कहना है-दूधकी तरह सफेद पेशाब होनेपर मैं - ऐसिड-फॉसके अलावा-कार्बो वेज, डलकामारा और कभी-कभी ऐसिड म्यूर का व्यवहार करता हूँ और उससे फायदा दिखाई देता है ( गाढ़े दूध, मठा या चायकी तरह हल्की लाली लिये पेशाब होनेपर-उसे काइल्यूरिया कहते हैं ; उसमें पेशाबके साथ मिला हुआ रक्त और चीं निकलनेके कारण पेशाब का रङ्ग उक्त प्रकार दिखाई देता है )। मैंने एक बार काइल्यूरिया-रोग ऐसिह फॉस ३x शक्ति नित्य ४ मात्रा, सिर्फ २-३ सप्ताह तक सेवन कराकर आरोग्य कर दिया था, जब कि ऐलोपेथोंने कहा था कि यह बीमारी आरोग्य नहीं हो सकती। ऐसिड फॉसमें-पेशाबको छोड़नेपर उसमें चाशनी या माँड़की तरह तली जमती है। जो हो, इस ऐसिडका व्यवहार करते समय रोगीके धातुदौर्बल्य पर सबसे पहले नजर रखनी चाहिये।
खाँसी-
रोगी सर्दी बिलकुल ही सहन नहीं करता, हवा लगते ही नयी सर्दी हो जाती है। सवेरे, शाम को योर सोने के बाद खाँसी बढ़ती है, सुबह बलगम अधिक निकलता है, बलगम का स्वाद नमकीन और रन पीला रहता है। फॉसफोरिक ऐसिड की खाँसी सरल होती है। ऐसा मालूम होता है मानो 1 पाकस्थली से खाँसी आ रही है। गले में सुरसुरी हो कर कमी-कभी आक्षेपिक खाँसी होती है। ब्रॉयोनिया में बहुत ज्यादा मात्रा में बलगम - निकलता है।
अतिसार-
बार-बार दस्त, दस्त परिमाणमें अधिक, पाखानेके साथ अजीर्ण पदार्थ, अनजानमें दस्त, वायु निकलनेके साथ अनजान में दस्त निकलना ( ऐलोकी तरह)-इसमें पेट फूलता है, पेट बहुत गड़गड़ाता है, दबदब किया करता है, पेट में गड़गड़ आवाज होती है पर दर्द जरा भी नहीं रहता ; पाखानेका रंग प्रायः सफेद या पानी की तरह पीला होता है। ऐसिड फॉस प्रयोग करनेके समय सभी बीमारियोंमें कमजोरीका लक्षण रहना चाहिए। परन्तु अतिसारमें कमजोरी बिल्कुल ही नहीं रहती, यही इसकी एक खास विशेषता है, जिसे याद रखें (पाखाना है या पेशाब यह समझमें नहीं आना, मलका कोई रंग ही नहीं होना-मर्क डलसिस, एपिस)।
ऐसिड फॉसके साथ चायनाका बहुत ही निकट सम्बन्ध है, दोनों का ही नयी और पुरानी बीमारियों में प्रयोग होता है। चायना के मल का रंग-पीला या सफेद, मल पतला और लसदार होता है, रोगी जो खाता है वह पाखाने के साथ ज्यों-का-त्यों निकल जाता है। ओलियेण्डर में भी इसी तरह अजीर्ण खाद्य निकलनेका लक्षण है, परन्तु उसमें रोगी बहुत पहले जो कुछ खा चुका रहता है वह भी निकल जाता है। ऐसिड फॉस में पाखानेका रंग प्रायः सफेद होता है। चायना में कमजोरी बहुत अधिक रहती है और खाने-पीने के बाद ही हैं। रातमें अतिसार का बढ़ जाना चायना का एक और प्रधान लक्षण है।
सिर-दर्द-
बहुत पढ़ने के कारण छात्रों के सिर-दर्द और जिनकी आकृति असली उमरसे अधिक दिखाई देती है उनके लिए यह बहुत लाभदायक है कैल्केरिया फॉस और नेट्रम म्यूर भी इसकी दवा है।
स्नायु-दौर्बल्य
सिरमें दर्द, सिरमें चकर, कलेजा धड़धड़ करना, इन्द्रियों का अवश हो जाना, पेट फूलना, अजीर्ण, हाथ पैरोंमें झुनझुनी, स्मरण-शक्ति का लोप हो जाना, किसी विषयको सोच न सकना, बात करने की इच्छा न होना, नींद न आना, भय, मानसिक सुस्ती इत्यादि इस बीमारीके लक्षण हैं और एनाकार्डियम, आर्जेण्टम नाइट्रिकम, एम्ब्रा ग्रिसिया, ऐसिड पिक्रिक, कैलि ब्रोम, जिंकम, फॉस्फोरस, ऐसिड फॉस, जेलसिमियम, मस्कस इत्यादि लक्षणके प्रभेदके अनुसार इसकी साधारण दवाएँ हैं। फॉस्फोरिक ऐसिड में थोड़ेसे परिश्रमसे भी रोगीको कमजोरी मालूम होना, स्त्री-संगकी इच्छा बहुत प्रबल रहना, बहुत देर तक लिंगमें कड़ापन रहना, जिससे हो तो रात भर जागते रहना पड़ता है और उसके बाद बहुत ज्यादा परिमाणमें वीर्य-स्खलन होता है, सुस्त हो पड़ता है।
ऐसिड पिक्रिक-
डॉ. नेशका कहना है, स्नायु-दौर्बल्य की जितनी भी अच्छी-अच्छी दवाएँ हैं-रोगका कारण अगर "बहुत ज्यादा इन्द्रिय-परिचालन" हो तो-पिक्रिक ऐसिड सबसे बढ़कर दवा है । इस ऐसिड का रोगीहमेशा मन मारे रहता है, केवल सोये रहनेकी इच्छा होती है, उदासीनता, आँखोंके आगे अन्धेरा दिखाई देता है, किसी भी काममें दिलचस्पी नहीं रहती, पैर हमेशा भारी मालूम होते हैं और कमर में दर्द, शरीर में जलन अनुभव होना, किसी विषयमें मन न लगा सकना-इन लक्षणोंका स्पष्ट समाबेश दिखाई देता है। क्रम-६ से लेकर सी-एम० शक्ति तक ।
मसाने के प्रदाह में-
जहाँ पेशाबमें फॉस्फेट, इण्डिकेन, यूरिक ऐसिड, ऐलबुमेन और शूगर (चीनी) रहती है और रोगी क्रमशः कमजोर होता जाता है, वहाँ भी-पिक्रिक ऐसिड लाभ पहुँचाती है ।
एनाकार्डियम-
शुक्र-क्षयके कारण स्नायविक दुर्बलता और स्मरणशक्ति घट जानेपर यह लाभदायक है,
स्त्री रोग-जो स्त्रियाँ बहुत कमजोर और रक्तहीन होती (एनिमिक ) है जिन्हें हरित्पाण्डु रोग रहता है ( क्लोरोटिक ) तथा ऋतुके समय यकृतमें दर्द, सभी कामोंसे उदासीनता, जिनका गर्भाशय कमजोरीके कारण बाहर निकल पड़ता है ( prolapsus of uterus ), ऋतु बहुत जल्दी-जल्दी होती है और स्राव बहुत ज्यादा होता है, पेशाब परिमाणमें अधिक होता है-जिससे कमजोरी आ जाती है, जरायु सूज उठता है--जिस से ऐसा मालूम होता है कि गर्भाशय में हवा भर गयी है, रोगिणी पुराना प्रदर रोग भोगा करती है, ऋतुसाव का रंग काला होता है-ऐसी धातुवालियों के लिये-ऐसिड फॉस अधिक उपयोगी है।
टाइफॉयड ज्वर ( सान्निपातिक ज्वर या मोतीझरा)-
रोग की पहली अवस्था में ऐसिड फॉस उपयोगी है, इसके बाद जब ज्वर विकार में परिणत होता है, उस समय भी इसका प्रयोग होता है। विकारकी अवस्थामें रोगी चुपचाप मुर्दे की तरह पड़ा रहता है, मानो तन्द्रासे घिरा है, कोई यदि कुछ पूछता या पुकारता है तो उत्तर तो देता है किन्तु क्षणभर के बाद इस तरह बेहोश-सा हो जाता है मानो सो रहा है, नींद खुलनेके बाद रोगी होश-हवासवाला मालूम होता है, और इसके साथ ही कभी-कभी पतले दस्त, पेट फूलना इत्यादि इस प्रकारके लक्षणोंमें-फॉस्फोरिक ऐसिड फायदा करती है ; पर यदि कभी इन लक्षणोंमें फॉस्फोरिक ऐसिडसे लाभ न हो, तो उस समय-स्पिरिट ऑफ नाइटरसे बहुत फायदा होगा ( मूल औषध ४.५ बूंदकी मात्रामें थोड़े पानीके साथ, २-२॥ घण्टेके अन्तरसे कई मात्राएं फायदा न होने तक देनी चाहिये)। उत्तर देता-देता रोगी सो जाए तो बैप्टिशिया और आनिका; पर बेप्टिशियाके-मल-मूत्रमें बहुत बदबू रहती है, और आर्निकामें एक तरहके दाने (इरपशन ) निकलते हैं, शरीरमें काली लकीर-सा दाग पड़ता है। ऐसिड फॉसमें यह सब कुछ नहीं रहता। रस टक्समें रोगी बहुत अधिक छटपटाया करता है। ऊपर कहे लक्षणोंके साथ ही आच्छन्न-भावके साथ यदि पेटकी गड़बड़ी रहे तो ऐसिड फॉस ही विशेष लाभ देती है। ओपियमके विकारमेंरोगी मोहाच्छन्नकी भाँति पड़ा रहता है, पुकारनेपर भी उत्तर नहीं देता, आँखें शिवनेत्रकी तरह कर पड़ा रहता है और जोर-जोरसे साँस छोड़ता है। नक्स मस्केटामें-बेहोशीका भाव, अतिसार, पेट गड़गड़ाना और अत्यन्त पेट फूलनेका भय रहता है, पर रोगीमें जरा भी प्यास नहीं रहती। टाइफॉयडज्वरकी पहली अवस्थामें नाकसे रक्त गिरनेपर-रोगमें कोई फायदा न हो, तो-फॉस्फोरिक ऐसिड ; और रोग घटनेपर-रस टक्स लाभदायक है । पेयर्स-पैच ( आँतोंकी गाँठों ) में-उत्तेजनाके कारण रोगीका इस तरह नाक खोंटना जैसे कृमि रोग हो गया हो और इसके साथ ही पेट फूलना, अतिसार,
ऐसिड सल्फ्युरिकम
अनजानमें दस्त, पीले या सादे रंगका पेशाब, पेशाबमें एलबुमेन ( अण्डलाल ) और फॉस्फेट निकले तो-ऐसिड फॉस फायदा करती है। ऐसी अवस्थामें सिनासे कोई लाभ नहीं होता।
वृद्धि-
मानसिक विकार, वीर्य-नाश, बातचीत, बहुत ज्यादा रति इत्यादि से।
ह्रास-
हिलने-डोलने पर, कभी-कभी दबावसे ।
सम्बन्ध–वात श्लेष्मा ज्वरमें-फॉस, पल्स, ऐसिड पिक्रिक, साइलि, ऐसिड म्यूर, और मोह तथा प्रलापमें-नाइट्रिक स्पिरि-डलसिसके साथ तुलना करनी चाहिए। भोजनके बाद मूर्छा का भाव होने पर-नक्स ।
बादकी दवाएँ-चायना, फेरम, सेलिनि, लाइको, नक्स, सल्फ, पल्स, बेल, कॉस्टि, आर्स।
क्रियानाशक-कैम्फर, कॉफि, स्टेफि ।
क्रियाका स्थितिकाल-४० दिन ।
क्रम-२x, २००, १०००, १०००० शक्ति तक।
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