नाइट्रिक एसिड - होम्योपैथी दवा के फायदे & उपयोग | Acidum Nitricum Uses in Hindi
नाइट्रिक ऐसिड का परिचय-
[सल्फ्यूरिक ऐसिड और नाइट्रेट-ऑफ-पोटाश से तैयार होती है ] - पारा, उपदंश ( गर्मी की बीमारी), कण्ठमाला इत्यादि के धातुगत विष से पैदा हुए रोगों में यह ऐसिड प्रतिविष ( antidote ) की तरह काम करती है ।
होम्योपैथी दवा नाइट्रिक एसिड / नाइट्रिकम एसिडम के फायदे & उपयोग-
नाइट्रिक ऐसिड-अस्थि, चर्म, रक्त, श्लैष्मिक-झिल्ली ( म्यूकस मेम्ब्रेन) और चर्म के सन्धि स्थान, ग्रन्थियाँ, ओठ के किनारे, मलद्वार, योनि आदि पर इसकी क्रिया अधिक होती है।
जिन मनुष्योंकी पेशियाँ कड़ी किन्तु शरीर दुबला रहता है, काले केश, काली आखें और स्नायुप्रधान धातुवाले, जो अकसर पुरानी बीमारियाँ भोगते रहते हैं, जिन्हें सहज ही सर्दी लग जाती है, जरासा अनियम होते ही जिनका पेट खराब हो जाता है और पेट की बीमारी पैदा हो जाती है, उनपर ही इस दवा की विशेष क्रिया होती है। जिन्हें कब्ज रहता है, उनकी बीमारी में यह उतना लाभदायक नहीं होती। बुढ़ापे की कमजोरी और अतिसार में इससे जल्दी फायदा होता है। इसका रोगी थोड़े-से कारण से ही उत्तेजित हो उठता है, गुस्सा हो जाता है, बहुत चिड़चिड़ाता है। अपने आरोग्य के विषय में निराश रहता है और हमेशा न जाने क्या-क्या सोचा करता है
होम्योपैथी दवा नाइट्रिक एसिड / नाइट्रिकम एसिडम के चरित्रगत लक्षण :
(१) गले के भीतर अथवा किसी दूसरी जगह के दर्द में ऐसा अनुभव होना कि काँटा या सींक गड़ गई है, दर्द एका-एक पैदा होना और एका-एक ही गायब हो जाना, एक बार एक जगह, तो दूसरी बार दूसरी जगह चबाने की तरह का दर्द, ऋतु-परिवर्तन और नींद के समय दर्द बढ़ जाना;
(२) टाइफॉयड ज्वर में रक्तस्राव, जखम से खून बहना, शरीरके सभी द्वारों से खून जाना, खून निकलने लगना;
(३) पेशाब गंदला, थोड़ा, कड़वा या तीखी गन्ध-भरा, पसीना, मल इत्यादि सब ही में बदबू ;
(४) पारा और उपदंश (गी-रोग) की प्राइमरी (प्राथमिक ), सेकेण्डरी (गौण ) या टर्सियरी उपदंशका जखम, पाराके अपव्यवहारके बाद मुंहका जखम ;
(५) पारा, गर्मी आदि रोगोंके कारण स्वास्थ्य-भंग हो जाना, रुग्ण होना ;
(६) अतिसार, अत्यधिक कूथने पर मल बहुत थोड़ा ही निकलना ; ऐसा मालूम होना मानो भीतर बहुत-सा मल मरा हुआ है निकलता नहीं है । मलद्वार में ऐसा दर्द मानो घाव हो गया है ;
(७) बवासीर या दूसरी बीमारियों में पाखाना होने के बाद बहुत देर तक मलद्वार में जलन और काँटा गड़ने की तरह दर्द (रेटान्हिया), पाखाने के समय खून जाना, जरासे में भी तेज दर्द, मलद्वार में फटे घाव ( फिशर );
(८) मुंह के कोने में फटे घाव (नेट्रम);
(६) टाइफॉयड ज्वरमें-आँतों से रक्तस्राव (ऐसिड म्यूर), गर्भस्राव, प्रसवके बाद या कोई चीज भारी उठानेके बाद अथवा बहुत ज्यादा परिश्रम के बाद रक्तस्राव, रक्त परिमाणमें अधिक, चमकीला लाल या काले रङ्गका ;
(१०) गर्मी या प्रमेह की वजहसे मसे ;
(११) खड़िया मिट्टी, मिट्टी, पेन्सिल वगैरह खानेकी इच्छा ;
(१२) हड्डीके चारों ओर या माथे के चारों ओर ऐसा मालूम होना मानो पट्टी बँधी हुई है ;
(१३) किसी भी ऊँची शक्तिकी दवाके प्रयोगके बाद रोगका बढ़ जाना ;
(१४) अपनी बीमारी और बीती हुई तकलीफों के विषय को लगातार सोचते रहना, हैजाकी बीमारी हो जाने का भय ;
(१५) कानसे सुनाई नहीं पड़ना, किन्तु चलती हुई गाड़ी अथवा रेलगाड़ो में चढ़ने पर उस समय अच्छी तरह सुन सकना ;
(१६) ऋतुस्राव आरम्भ होने के पहले मन खराब हो जाना ;
(१७) रोगी का दिनों-दिन दुबला और कमजोर होते जाना, यहाँ तक कि काँपता रहता है, हमेशा पड़ा रहना चाहता है ;
(१८) नाड़ी की गति रुक-रुककर ;
(१६) सिरके केश झड़ जाना, चाँद पर स्पर्श सहन न होना, दर्द होते रहना, हाथ पैर व बगल में पसीना होता है। अंगुलीमें गला-घाव हो जाते हैं।
नाइट्रिक एसिड - होम्योपैथी दवा के उपयोग | Acid Nitricum / Acidum Nitricum / Nitricum Acidum / Uses in Hindi
उपदंश-
ऐसा मालूम होना कि उपदंश के ऊपर सफेद फूही ( slough) की तरह जमे हुए जखम को कोई लकड़ीसे कुरेद रहा हो और उस जखम के चारों ओर मांसांकुर ( granulation) पैदा होते हैं, उनमें हाथ लगाते ही खून निकलने लगना, बँधी हुई पट्टी ( bandage) खून से भीग जाना - इसमें इससे फायदा होगा। नाइट्रिक ऐसिडके उभेद (इरप्शन) तांबे के रङ्ग के तथा छोटी-छोटी फुन्सियोंकी तरह होते हैं, नाक तथा ओठ के कोने में जखम हो जाता है या फट जाता है, घाव से जो पीब या रस निकलता है उसमें बहुत बदबू रहती है, जखम गहरा रहता है। "लकड़ी से कुरेदा-सा जाना और जलन मालूम होना”—ये नाइट्रिक ऐसिडके विशेष लक्षण हैं।
नाइट्रिक ऐसिड में- हड्डी का दर्द रात के समय, बरसात के दिनोंमें या वर्षां ऋतु में अधिक बढ़ता है। इसके दाने हाथ, सिर और दाढ़ी की हड्डीमें अधिक होते हैं। पारद की प्रधान क्रियानाशक ( antidote ) दवा है-
हिपर सलफर ; पर यदि उपदंशके साथ पारा का विष मिला रहे, तो-नाइट्रिक ऐसिड अधिक लाभ करती है। मैस्टायेड सेल (गो-स्तन कोष) में प्रदाह पैदा होकर जखम हो जाये ( caries of mastoid ) और वह जखम क्रमशः अस्थि तक चला जाये तो-ऑरम मेट, नाइट्रिक ऐसिड आदि लाभ करती हैं। कैप्सिकम प्रदाहकी पहली अवस्थकी दवा है ।
मुँह का घाव-
मुंहके घावमें मुँह से लगातार लार बहा करता है। उस घाव में सीक के गड़नेकी तरह दर्द होता है-इस लक्षण में नाइट्रिक ऐसिड अधिक फायदा करती है। अगर जखम जीम अथवा मसूढ़े से आरम्भ होकर गले के भीतर तक फेस जाये और जखम में काँटा गड़ने की तरह दर्द हो तो इससे जरूर फायदा होगा। मसूढे में जखम, उससे रस-रक्त निकलना, जीम में घाव, सूजन, जलन इत्यादिमें नाइट्रिक ऐसिड से खूब फायदा दिखाई देता है। घाव, पारा या उपदंशके कारण हो, तो और भी ज्यादा फायदा करती है।
जखम
जो जखम बहुत जल्दी-जल्दी बढ़ जाते हैं, जखमसे भद्दी बदबूदार पीब निकलती है, उसमें हाथ लगाते ही खून निकलने लगता है-उसमें नाइट्रिक ऐसिड लाभ करती है। खून बहनेवाले मसे में इससे ज्यादा फायदा होता है।
पैरकी अंगुली का गला-
घाव-पैर के तलवे में पसीना होकर पैर की अंगुली में पानी-गला-घाव हो जाता है, उसमें तेज तनाव और खोंचा मारने की तरह दर्द होता है। नाइट्रिक ऐसिड के पसीने में बहुत बदबू रहती है। जिनके हाथ, हथेली और बगल में पसीना होता है, उनके लिये यह अधिक फायदेमन्द है।
आँखों की बीमारी-
कार्निया में जखम, दूना देखना, गुहेरी इत्यादिमें यह ज्यादा फायदा करती है। यदि फायदा न हो, तो-कैल्केरिया सल्फ का प्रयोग करना चाहिये। पारद के अधिक व्यवहार के कारण हुए आइराइटिस (तारकामंडल-प्रदाह) रोग में-आँख के चारों ओर और वहाँ की हड्डी के भीतर दर्द रहने पर नाइट्रिक ऐसिड से लाभ होता है । इसके अलावा एसाफिटिडा, मर्युरियस आदि दवाएँ भी उपयोगी हैं ( उनका प्रभेद देखिये )। एसाफिटिडा का दर्द-नाइट्रिक ऐसिड की अपेक्षा और भी ज्यादा होता है और रातमें उपसर्ग बढ़ जाते हैं (सिनाबेरिस देखिये)।
सिर में चक्कर और सिर-दर्द-सबेरे और रात में, बिछोने से उठने और टहलने के समय दर्द बढ़ता है और गाड़ी में चढ़ने पर घटता है। सिर-दर्द के समय ऐसा मालूम होता है मानो हड्डी के भीतर दर्द हो रहा है। ऊपर बताये समयों के अलावा सिर दर्द रात में भी बढ़ता है। ऐसा मालूम होता है मानो माथे में पट्टी बँधी है। टोपी के दबाव से भी सिर-दर्द बढ़ता है और कान से ब्रह्मतालु तक फेल जाता है।
खाँसी-यकृत की गड़बड़ी के कारण खाँसी, गले में सुरसुरी होकर खाँसी, रात में सोने या नींद लग जाने पर खाँसी बढ़ती है। बहुधा सूखी खाँसी आती है, रात की खाँसी में अकसर कुछ नहीं निकलता, बलगम खून मिला, पुरानी सूखी खाँसी, गले में जखम की तरह दर्द। इसके अलावा यक्ष्मा-रोग की खाँसी में भी नाइट्रिक ऐसिड उपयोगी है । जब फेफड़े में टियुबरकल् (गुटिका) फटकर जखम होता है, हेक्टिक ज्वर (क्षयज्वर ) और राक्में पसीना हुआ करता है, छाती में बहुत दर्द होता है, मुंह से लगातार चमकीला लाल रंग का खून निकला करता है, श्वासमें तकलीफ होती है, सवेरे स्वरभंग और रोग-वृद्धिके साथ-ही-साथ पतले दस्त आते हैं, परीक्षा करनेपर छातीमें जोरकी घड़घड़ आवाज ( loud rales ) मिलती है, पीब मिला बदबूदार बलगम निकलता है, उस समय नाइटिक ऐसिड विशेष लाभ करती है ।
थाइसिस (यक्ष्मा)-
यह रोग एक तरह से दुरारोग्य होने पर भी जब रोगी के कलेजे में खून इकट्ठा होता है और इतना दर्द होता है कि कलेजे पर हाथ नहीं रखा जाता, मुंह से रक्त आता है, श्वासकष्ट और दम रुक जाने की तरह हो जाता है, रोगी बहुत अधिक कमजोर हो पड़ता है, रातमें पसीना होता है—उस समय नाइटिक ऐसिड से कुछ फायदा हो सकता है।
भगन्दर और बवासीर ( fistula in ano and piles)-
पाखाना ढीला या कड़ा, कैसा भी क्यों न हो, पाखानेके समय और बाद में मलद्वारमें जोर की जलन और ऐसा मालूम होना मानो मलद्वारमें काँटा चुभा हुआ है। नाइट्रिक ऐसिड में- पाखाने के समय और बाद में जोरकी कूथन और वेग रहता है, मलद्वार फटकर उसमे घाव हो जाता है, खून गिरता है।
प्रेफाइटिस-नाइट्रिक ऐसिड के कितने ही लक्षण रहनेप र भी इसमें वेग और कूथन नहीं रहती।
रैटान्हिया ( ratanhia) ३x, ६x शक्ति–
पाखाने के समय बहुत अधिक वेग रहता है ; इसके अलावा जलन इतनी अधिक रहती है मानो किसी ने लाल मिर्च की बुकनी छिड़क दी हो। .
पियोनिया ऑफिसिनैलिस ( peonia ) ३, ६-
मलद्वारसे हमेशा ही रस निकला करता है और वहाँ दर्द तथा तनाव बहुत अधिक रहता है। डा. ह्य जेस का कहना है -कमरके नीचे कहीं भी घाव क्यों न हो, वह पियोनियासे आरोग्य हो जाता है ।
मलद्वारमें-खुजली, फूलना, जोरकी जलन, पाखाने के बाद भीतर बहुत जाड़ा मालूम होना, भगन्दर और अतिसार, तकलीफ देनेवाला जखम, पेरिनियम ( सीवन) के ऊपर से लगातार बदबूदार स्त्राव बहा करना, बवासीर, मलद्वारका फटना इत्यादि भी पियोनिया के अन्तर्गत है।
साइलिसिया-
बहुत कब्जियत, मल बाहर निकलकर फिर भीतर घुस जाना आदि लक्षण रहने पर साइलिसिया होम्योपैथिक दवा का सेवन करें।
बवासीर के रोगी को-कब्जियत के लिये नित्य सवेरे छिलका-उतरे काले तिल पीसकर २ भरी, मक्खन २ भरी, मिश्री २ भरी-एक साथ मिलाकर खाना चाहिये। बवासीर के रक्तस्राव के लिये-साइमेक्स और इस्क्युलस का भी सेवन किया जा सकता है।
मलद्वारमें मसा-
मलद्वार में एक तरहके फटे-फटे घावके साथ उसके पास खूब ऊँचा मसा और उसके साथ ही वहाँ की हड्डी में दर्द रहता है ।
पेशाबकी बीमारी-
थोड़ा हो या अधिक, पेशाबमें अकसर खून रहता है और पेशाब में घोड़े के पेशाब की तरह तेज गन्ध रहती है (ऐसिड बेञ्जो); It is also useful in Oxaluria. लगातार पेशाबका वेग ; पर पेशाब थोड़ा-थोड़ा होता है, पेशाब के समय बहुत जलन रहती है, मूत्रनलीके भीतर जलन, जलन दूर करनेके लिये रोगी बार-बार पेशाब करने की चेष्टा करता है पर उससे तकलीफ और भी बढ़ जाती है। ये लक्षण अकसर नाइट्रिक ऐसिड में दिखाई देते हैं। प्रमेह रोग में या किसी दूसरे कारण से मूत्रनली में जखम होने पर- नाइटिक ऐसिड से विशेष फायदा हुआ करता है ।
अतिसार और आमाशय-
पाखानेमें बहुत बदबू, सड़ी गन्ध, हरे, कालिमा-लिये हरे और पानी की तरह पतले दस्त, उनमें खूनके छींटे या अधिक रक्त, पाखानेके साथ श्लेष्माके फटे-फटे टुकड़ोंकी तरह पदार्थ रहता है। पाखानेके समय पेटमें छूरोसे काटनेकी तरह दर्द और जलन तथा पाखानेके बाद बहुत देर तक दर्द और जलन रहती है । रक्तामाशय में बहुत कुथन और वेग, लगातार पाखाने का बेग होता है ; पर सभी समय पाखाना नहीं होता, कभी-कभी तो निरे खून का पाखाना होता है ; इसके साथ ज्वर भी रहता है। नाइट्रिक ऐसिडके रोगी को प्रायः पतले दस्त ही आते हैं, कब्जियत नहीं रहती। -
वात-श्लेष्मा ज्वर ( typhoid)-
इस रोग में दुसरे या तीसरे सप्ताह में प्रायः आँत में ( peyer's patches ) घाव हो जाता है। जब ज्वरके साथ अतिसार। बदबूदार गहरे हरे रङ्ग का, पीला हरा, आँव या रक्त मिला पाखाना हुआ करता है, पेटमें कभी-कभी तेज दर्द और जीभमें छाले हो जाते हैं, उस समय नाइट्रिक ऐसिड लाभ करती है। इस ज्वरमें अकसर निमोनिया हो जाया करता है। छाती में श्लेष्मा की घड़बड़ाहट की आवाज होती है-यह लक्षण ही क्षण-भर भी देर न कर तुरन्त नाइट्रिक ऐसिडका प्रयोग करें। इस समय रोगी की नाड़ी हरेक तीसरे स्पन्दन पर रुक जाती है ( ऐसिड म्युर में भी यह लक्षण है )। टाइफॉयड-ज्वरमें मलद्वार से रक्तस्राव होने पर-नाइट्रिक एसिड अधिक लाभ करती है। इसके अलावा इस ज्वर में रक्त-स्राव की और कई दवाएँ लक्षण के अनुसार प्रयोग की जाती हैं। जैसे :
ऐल्यूमिना-
रक्त थक्का-थक्का, एक-एक थक्का खूब बड़ा, पेटमें दर्द बिलकुल ही नहीं रहता।
हैमामेलिस-
रक्त कुछ काला (ठीक हैमामेलिस-मदर टिंचरके रंगकी तरह )। इसमें रक्त-स्राव के समय पेट में दर्द रहता है। खून का थक्का-थक्का नहीं रहता।
ऐसिड नाइट्रिक-
रक्तका रंग चमकीला लाल। रक्तमें एक भी थक्का नहीं रहना, यहाँ तक कि छोटे-छोटे थक्के भी नहीं रहते।
आर्निका-
रक्त चमकीले लाल रंग का, उसके साथ छोटे-छोटे थक्के रहना।
लैकेसिस-
सड़ी दुर्गन्धयुक्त काले रंग के पाखानेके साथ रक्त ।
टेरिबिन्थ-
रक्तस्रावके साथ पेट फूलना ( पेशाबकी राहसे रक्तस्राव )।
चायना-अधिक स्रावके कारण कमजोरी, इसमें कान में भों-भों आवाज होती है और बेहोशी का भाव हो जाता है। स्मरण रखें कि टाइफॉयड ज्वरकी प्रधान दवाएँ बैप्टिशिया, आर्सेनिक, म्यूरियेटिक ऐसिड से भी रक्तस्राव बन्द होता है।
गर्भस्राव-
गर्भस्राव होनेके बाद या प्रसव के बाद बहुत अधिक रक्तस्राव के साथ ऐसा दर्द हो कि जैसे योनि की राह से पेट की नस-नाड़ियाँ निकल पड़ेंगी; और ऐसे दर्द के साथ कमर, जाँघ तथा कूल्हेमें दर्द रहनेपर ऐसिड नाइट्रिक अधिक उपयोगी है। -
स्त्री-रोग-
कुछ-कुछ पीले रंगका सड़ा बदबूदार प्रदर-स्राव, ऋतुस्रावके बाद बढ़ना, जरायु-ग्रीवामें जखम और प्रदाह, जरायु-मुख पर दाने की तरह उत्पन्न होना, उससे पानी की तरह पतला खाल उधेड़ देने वाला बदबूदार स्राव निकलना। योनि-मुख में तनाव-सा होना और खूब खुजलाना, योनिके भीतर सूई गड़नेकी तरह दर्द। जरायु से या जरायु के जखम और अर्बुद से लगातार रक्तस्राव हुआ करता है। जरायुसे रक्तस्राव होनेपर तल पेटसे नीचे की ओर बड़े जोर का दर्द उरु तक उतर जाता है, पेशाब में कटु गन्ध रहती है, रोगिणी कमजोर और रक्तहीन हो जाती है। मासिक ऋतुस्राव खूब जल्दी-जल्दी और परिमाण में अधिक होता है, खून का रंग कीचड़-मिले पानी की तरह होता है।
प्रसवके बाद जरायु से रक्तस्राव ( metrorrhagia):
सविराम-ज्वर-जिनकी सर्दी की धातु है उनके पुराने ज्वर में नाइट्रिक ऐसिडके विशेष लक्षण-मुंहमें छाले, पेशाबमें बदबू, सन्ध्या या रातको और ऋतु-परिवर्तनके समय ज्वर बढ़ना आदिमें यह विशेष उपयोगी है। नाइट्रिक ऐसिडका ज्वर दो या तीन दिनोंका अन्तर देकर आता है। सविराम ज्वर-तीसरे पहर, सन्ध्या या रातको आता है तो नक्स वोमिकाकी तरह लगातार जाड़ा लगता रहता है। इसके बाद १०-१५ मिनटके लिए ताप और उसके बाद पसीना आता है। सभी अवस्था में प्यास नहीं रहती, पैर बहुत ठण्डे रहते हैं, इसके पसीने और मूत्र में घोड़ेके पेशाबकी तरह बदबू रहती है, ओठोंके कोने फटे और ओठमें घावकी तरह हो जाता है। यकृतजनित पुराना बुखार हो तो-नाइट्रिक ऐसिड लाभदायक है।
कान की बीमारियाँ-
कान के भीतर से पानी की तरह स्राव निकलना, उसमें बहुत बदबू रहना, कान में कोंचने की तरह टपक का दर्द और तकलीफ होना, उपदंश-रोग वाले के कान पकना, कान के पीछे सूजन और वहाँ पककर सड़ जाना।
बहरापन-
रोगी कुछ भी सुन नहीं पाता; पर जब गाड़ी या रेलगाड़ीमें सवारी करता है, उस समय धीरे-धीरे बात करने पर भी सुन लेता है ( ग्रेफाइटिस देखिये)। इसका एक और प्रधान लक्षण है-गाड़ीमें जाने-आनेके समय गाड़ीकी आवाजसे उसे कोई तकलीफ नहीं होती; पर पक्की सड़क से जानेवाली गाड़ी की आवाज सहन नहीं होती, तकलीफ मालूम होती है। कुछ चबाने पर कानमें खट-खट आवाज होती है।
नाइट्रिक ऐसिड-
यह पारा के और अधिक मात्रा में डिजिटेलिस खाने के कारण पैदा हुए रोगों की प्रतिषेधक है। यह उपदंश-रोग की महौषधि है ; कैलेडियम से पहले और बाद में तथा कैल्केरिया, हिपर और थूजा के (खासकर कैलि कार्ब के ) बाद ज्यादा फायदा करती है। लेकेसिस के पहले या बाद में इसका व्यवहार करना उचित नहीं है। ।
वृद्धि-आधी रात के बाद, छूने पर, सर्दी-गमीं के हेर-फेर से, पसीना निकलने पर, पानी से धोने या नहाने से, गरमी की ऋतु में, शीत-प्रधान स्थानमें, जागने से
बाद की दवा-
आर्निका, एरम टाइ, बेल, कैल्के कार्ब, कैलि कार्य, क्रियो, मर्क, फॉस, पल्स, साइलि, सल्फ, सिपि, थूजा।
क्रियानाशक-
एकोनाइट, कैल्केरिया, हिपर, कोनि, मर्क, मेजेरि, सल्फ।
क्रियाका स्थितिकाल-४० से ६० दिन । क्रम-६, २०० शक्ति। पारद-विषनाशक-२०० शक्ति ही उत्तम है ।
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