ऐस्क्यूल्स हिपोकैस्टेनम के फायदे | Aesculus Hippocastanum For Blind Piles in Hindi - Saralpathy

ऐस्क्यूल्स हिपोकैस्टेनम के फायदे | Aesculus Hippocastanum For Blind Piles in Hindi

होम्योपैथिक दवा (AESCULUS - HIPPOCASTANUM) बवासीर, बवासीर के रोग में शिराओं में रक्त-संचित (खून जमा) हो जाना, बादी बवासीर, बवासीर का मसा आदि में फायदा

ऐस्क्यूल्स हिपोकैस्टेनम का परिचय: 

[यूरोप और अमेरिकाके एक प्रकारके वृक्ष से टिंचर तैयार होता है] 


(होम्योपैथिक मेडिसिन ऐस्क्यूल्स बादी बवासीर के अधिक इस्तेमाल होता है।)


मुख्य रूप से होम्योपैथिक दवा "इस्क्युलस या ऐस्क्यूल्स हिप्पोकैस्टेनम (AESCULUS - HIPPOCASTANUM)" बवासीर, बवासीर के रोग में शिराओं में रक्त-संचित (खून जमा) हो जाना, बादी बवासीर, बिना कब्ज के पीठ / कमर में दर्द होना, कितने ही स्त्री-रोग और फेरिञाटिस ( गलनली-प्रदाह ) इत्यादि रोगों में व्यवहार के लिये प्रसिद्ध है। 


ऐस्क्यूल्स का रोगी क्रोधी और आशाहीन रहता है। डॉ० हेल का कहना है- ऐस्क्यूल्स की क्रिया यकृत, यकृत-धमनी और सिरा ( liver and portal system ) इत्यादि पर होती है ।


ऐस्क्यूल्स हिप्पोकैस्टेनम की क्रिया-

यकृतकी क्रिया की विलक्षणता से तथा और भी कई कारणो से मलद्वार के बगल और भीतर की श्लैष्मिक झिल्ली की हिमरॉयडल (निम्न सरलांत्र) शिराओं में रक्तकी अधिकता होकर वे फूल उठती है, हिमरॉयडल-शिरा में खून ज्यादा हो जाने की वजह से शिरा फट जाती है और मलद्वार से खून निकलने लगता है ( इसे हम लोग खूनी बवासीर कहते हैं); इससे मलद्वार में प्रदाह होता है, उस शिरा का आखरी भाग फूल कर मलद्वार के भीतर या बाहर बकरी के स्तनकी छीमी की तरह हो जाता है, कब्ज इत्यादि कितने ही उपसर्ग पैदा हो जाते हैं। यही बवासीर ओर बवासीर का मसा है। इस पर ऐस्क्यूल्स की विशेष क्रिया होती है।


नीचे लिखी बीमारियोंमें ऐस्क्यूल्स की अधिक जरूरत पड़ती है :

(१) बवासीर और बवासीरका मसा; 

(२) कमर और कूल्हे की हड्डी में तेज दर्द, जिसकी वजह से काम-काज न कर सकना ( मैकरोटिनम ); 

(३) कब्ज, सरलांत्र ( काँच) निकलना; 

(४) अर्श या पित्त-वृद्धि के साथ मन्दाग्नि और पाकाशय-शूल ( गैस्ट्रेलजिया); 

(५) बाधक, श्वेतप्रदर, ऋतु-स्राव का रङ्ग कालिमा लिये, स्राव गाढ़ा, खाल गला देने वाला; 

(६) फॉलिक्युलर फैरिजाइटिस अर्थात् गलकोष की ग्रन्थि-वृद्धि के साथ गलकोषका प्रदाह । 


चरित्रगत लक्षण:

(१) शरीरके कितने ही स्थानोंमें, जैसे-हृत्पिण्ड, फेफड़े, पाकस्थली, मस्तिष्क, तलपेट, चर्म इत्यादि स्थानोंमें इस तरह की पूर्णता मालूम होना मानो बहुत-सा खून जमा हुआ है, हमेशा दुखित-क्रोधी स्वभाव रहना ; 

(२) यकृत और हिमरॉयडल शिरा ( मल नली का नीचे वाला शिरा-जाल ) में रक्त इकट्ठा होना, दर्द ; 

(३) मुंह, गला, मलनली आदि की श्लैष्मिक झिल्ली का फूलना ; वहाँ दर्द ; जलन और सूखापन मालूम होना ; 

(४) नाकसे पानी की तरह कच्चे जुकाम का स्राव निकलना, नाक में जलन, नाक में घाव की तरह दर्द, ठण्डी हवा लगनेसे तकलीफ बढ़ना; 

(५) बवासीर, मलद्वार में जलन, खुजली, सूखापन, गरमी और भार मालूम होना, ऐसा मालूम होना जैसे मलद्वार में कीलें ठोंकी हुई हैं ; (६) कमर और कूल्हे की हड्डी में तेज दर्द के साथ कब्ज ; गर्भावस्थामें कमरमें बेतरह दर्द ; जरायु का अपने स्थान से हटना (प्रोलेप्सस), श्वेत प्रदर ; 

(७) गलकोष प्रदाह रोगमें-गले में जलन, गलेमें गोदने की तरह दर्द और सूखा- पन, सूखी खाँसी।


बादी बवासीर के रोग में-

अर्श-मलद्वार में कुछ गड़ते रहनेकी तरह दर्द, अकड़न का दर्द, कमरमें दर्द pain in sacroiliac symphysis pubis ), भार मालूम होना, मलद्वार में जलन, खुजली, मसा (भीतरी या बाहरी मसा), उसमें बहुत दर्द, यकृत की जगह भार मालूम होना, कमर में दर्द, पाखाना हो जाने के बाद मलद्वार में बहुत देर तक जलन रहना, पाखाना हो जाने के बाद मलद्वार रुका है ऐसा मालूम होना इत्यादि इसके विशेष लक्षण हैं। ऐस्क्यूल्स के बवासीर में-साधारणतः रक्तस्राव नहीं रहता ( blind piles), पर बीमारी पुरानी हो जाने पर रक्तस्राव भी होता है। इसमें बवासीर का दर्द-कमर और पीठ तक फेल जाता है। ऐस्क्यूल्स-नक्स वोमिका, सलफर और कॉलिन्सोनिया से यदि किसी तरह का फायदा न दिखाई दे, तो उनके बाद इसका प्रयोग करने से विशेष लाभ होता है। इसका दर्द आदि विश्राम करनेपर घटता है और हिलने-डोलने पर बढ़ता है। 


नक्स वोमिका-

इसके बवासीर में अकसर खून जाता है ; पाखाना लगता है, पर होता नहीं। इसके मलद्वारका दर्द और कमरका दर्द ऐस्क्यूल्स के दर्द की अपेक्षा बहुत कम होता है और विश्राम करनेपर घटना और हिलने डोलने या परिश्रमसे बढ़ना-यह लक्षण भी नहीं है। नक्ससे बीमारी कुछ घटनेपर । उसके बाद सलफरसे लाभ होता है। बवासीर की बीमारी में सवेरे सलफर और शाम को नक्स वोमिका के व्यवहार करने से अधिक फायदा होता है। 


रैटानहिया-

(एक तरहके वृक्षकी जड़से इसका मदर-टिंचर तैयार होता है) क्रम-३, २००-मलद्वार में काँच के टुकड़े-से गड़ना और दर्द ऐस्क्यूल्स की अपेक्षा कम रहने पर भी इसमें इतनी अधिक जलन रहती है कि जैसे किसी ने लाल मिर्च की बुकनी छिड़क दी हो। पाखाना हो जानेके बाद मलद्वारमें असह्य दर्द और बहुत देर तक जलन रहती है। ऐस्क्यूल्स में- पाखाने के बहुत देर बाद और रैटान्हिया में-पाखाना होनेके ठीक बादसे ही जलन आरम्भ हो जाती है। मलद्वारमें फिशर (फटना), जिसमें स्पर्श सहन न होनेवाला दर्द और स्तनकी धुण्डी फटने (फिशर) में भी रैटान्हिया ( ratanhia) फायदेमन्द है। 


कॉलिन्सोनिया-

बवासीरसे लगातार खून जाना (खून न जानेपर भी इससे लाभ होता है ), रोगीका ऐसा समझना कि मलद्वारमें काँचका चूरा या एक धारदार काँटी गड़ी हुई है। इसके उपसर्ग रातमें बढ़ते हैं। जबरदस्त कन्ज, मल कड़ा और गेंद की तरह गोल । 


हैमामेलिस-

बहुत ज्यादा परिमाणमें रक्तसाव । 


इस्क्युलस ग्लैबरा

जो आलसी हो, काम-काज करनेकी इच्छा न होती हो, शराब आदि पीते हों, उनकी बीमारी में-इस्क्युलस ग्लैबरा लाभदायक है ।


बच्चों के बवासीरमें-

ऐमोन कार्ब, बोरेक्स, मधुरियस ; 

वृद्धों के बवासीरमें-

ऐमोन कार्ब, ऐनाकार्डियम ; 

गर्भावस्थामें-लाइकोपोडियम, नक्स ; सौरीमेंपल्सेटिला ; 

शराबियों के बवासीर में- लेकेसिस, नक्स आदि 

अर्श के कारण काँच बाहर निकल पड़े और भीतर न जाये तो-स्टा का बाहरी और ३० या २०० शक्तिका भीतरी प्रयोग करना चाहिये। 


स्त्री-रोग-

जरायु का फूलना, दर्द, गर्भाशय का टेढ़ा हो जाना या घूम जाना, जरायु कड़ी होना, उसमें टपक इत्यादि में-इस्क्युलस (ऐस्क्यूल्स) बहुत फायदा करती है। पीले रंगका प्रदर का स्त्राव, बाधक का दर्द और उसके साथ ही कमरमें दर्द इत्यादिमें भी यह लाभदायक है। इसके साथ बवासीर, यकृत का दोष वगैरह कुछ भी देखने की जरूरत नहीं। 


खाँसी-फॉलिक्युलर फैरिजाइटिस- 

सवेरे बलगम अधिक निकलना, गला फंसा रहना, गलेमें घाव, दर्द, सूखापन, जलन (chronic pharyngitis: पुराना गलकोष-प्रदाह) और बवासीर वाले रोगियों की इस बीमारी में ऐस्क्यूल्स (इस्क्युलस) अधिक लाभदायक है।


बासीर में-

एलो, कॉलिन्सो, इग्ने, ऐसिड म्यूर, नक्स, -


सम्बन्ध- अर्श में कॉलिन्सोनिया के बाद ऐस्क्यूल्स (इस्क्युलस) से रोग बिलकुल हो जाता है। नक्स और सलफर से फायदा न होनेपर-ऐस्क्यूल्स का प्रयोग करें। 


क्रियानाशक- नक्स। 

क्रिया का स्थितिकाल- ३० दिन । 

क्रम- Q, 3x, 6x, 30, 200, से उच्च शक्ति।


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