ऐसिड हाइड्रोसियानिकम | Acid Hydrocyanicum Uses in Hindi
ऐसिड हाइड्रोसियानिकम ( Acid Hydrocyanicum )
[ तीते बादाम, सीताफल के बीज, बेरकी गुठली आदिमें और पीचवृक्षके पत्तोंमें जो एक तरहका तेज विषेला पदार्थ रहता है-यह वही विष है ] इसकी एक बूँदसे क्षण भरमें किसी जीव का जीवन नष्ट हो सकता है; परन्तु यही शक्तिकृत होनेपर, हैजा की अन्तिम अवस्था में और अकड़न, धनुष्टङ्कार तथा हत्पिण्डकी बीमारी इत्यादिमें बहुत समय मुर्दे में जान डाल देता है । इसीका दूसरा नाम है- प्रसिक ऐसिड ।
हैजा-एकाएक नाड़ी छूटकर सारा शरीर बरफकी तरह ठण्डा और पोखाना, पेशाब, वमन सभी बन्द हो गये हों; साँस छोड़ने में बहुत कष्ट (साँस लेनेमें कष्ट – आर्सेनिक) इत्यादि लक्षणवाले हैजामें शीत आ जानेकी अवस्था में - यह अधिक लाभ करता है; परन्तु यह भी देखा जाता है कि इसकी क्रिया ज्यादा देर तक नहीं ठहरती; ऐसी अवस्था में सियानाइड ऑफ पोटाशअधिक लाभ करता है और उससे स्थायी फायदा भी दिखाई देता है। डॉ० सलजर का कहना है-पैरालिटिक अर्थात् पाक्षाघातिक जातिके हैजामें जहाँ एकाएक २-४ बार ही दस्त के होकर नाड़ी दब जाती है, सारा शरीर बरफकी तरह ठण्डा हो जाता है, या नीला पड़ जाता है, रोगी मुर्देकी तरह सुन्न होकर पड़ा रहता है, वहाँ हाइड्रोसियानिक ऐसिड प्रयोग करना चाहिये ; पर हमलोग इन सब लक्षणोंमें- कैम्फर से अधिक फायदा होते देखते हैं। सारांश यह कि हृत्पिण्डकी तेज गति, नाड़ी क्षीण और असम, हृत्पिण्ड और फेफड़ेमें रक्त इकट्ठा होना, वहाँ बहुत अधिक दर्द, पहले खीचन, उसके बाद पेशियों में बहुत सुस्ती, बिलकुल बेहोशीका भाव, उद्वेग, श्वासमें कष्ट, गलेमें घड़घड़ शब्द, हृत्पिण्डका एकाएक सुस्त पड़ जाना, सारा शरीर बरफकी तरह ठण्डा हो जाना इत्यादि — हाइड्रोसियानिक ऐसिड प्रयोगके विशेष लक्षण हैं।
सियानाइड-पोटाश ( cyanide potass ) – ऐसिड-हाइड्रो की भाँति यह भी तेज विष है। किसी बीमारीमें बहुत अधिक श्वासकष्ट, दम रुकनेकी तरह भाव, हिमांग, नाड़ीका लोप हो जाना, रोगका एकाएक आक्रमण, देखतेदेखते रोगके उपसर्ग बढ़ जाना इत्यादि लक्षण रहनेपर - इससे बहुत फायदा होता है। हैजाकी शीतवाली और नाड़ी लोप होनेवाली अवस्थामें- यदि श्वासमें कष्ट हो, तो इससे उपकार होनेकी विशेष सम्भावना तो है ही,उसके अलावा - प्रतिक्रिया आरम्भ होकर रोगी जब धीरे-धीरे आराम होने की ओर बढ़ रहा हो, उस समय यदि एकाएक श्वासकी तकलीफ पैदा हो जाये और रोगीकी हालत फिर बिगड़ जाये, मृत्युकी सम्भावना दीख पड़ने लगी हो, तो - तुरन्त इसका प्रयोग करना चाहिये। कितने ही चिकित्सकोंका कहना है कि इसके - ६x विचूर्णके क्रमसे ही जल्दे फायदा होता है। -
कोब्रा या नैजा- यह भी हैजेकी हिमांग-अवस्थाकी उत्तम दवा है। हैजाकी हिमांग-अवस्था में उर्ध्व- श्वास चलने लगे, श्वास-प्रश्वासकी क्रिया बहुत जल्दी-जल्दी हो तथा हृत्पिण्ड बहुत जोर-जोरसे चलता हो, प्रयोग कर रोगीको कालके कराल गालसे लौटा लाया जा सकता है। लैकेतो इसका प्रभेद – नेजा अध्याय में है सिस भी इसी अवस्थाकी एक लाभदायक दवा देखिये । फुसफुसका पक्षाघात-ओठ नीले दिखाई देते हैं। ;
धनुष्टङ्कार – शरीर लकड़ीकी तरह कड़ा हो जाता है, माथा पीठकी ओर धनुषकी तरह टेढ़ा हो जाता है, साँस देरसे चलती है, जबड़े अटक जाते हैं, मुँह में फेन भर आता है और गर्दन में खींचन होती है। वक्षस्थल में खींचन हो, तो— साइक्यूटा । साइक्यूटाका रोगी टकटकी लगाकर देखता रहता है, बेहोशी जल्दी-जल्दी आती है। हाइड्रोसियानिक ऐसिडकी बेहोशी ज्यादा देर तक ठहरती है। e 29!
मृगी- असली मृगी नहीं किन्तु मृगीकी तरहकी बेहोशी ओर खींचन; खींचन आरम्भ होनेके पहले वमन, जी मिचलाना, मुँह में पानी भर आना इत्यादि कई लक्षण रहते हैं ( ऐन्सिन्थियम देखिये ) ; दाँती लग जाती है, मुँहसे फेन निकलता है, आँखकी पुतली स्थिर हो जाती है या बड़ी हो जाती है। •
खाँसी- हत्पिण्डकी बीमारी के साथ खाँसी और यक्ष्मा रोगियोंकी सूखी खुसखुसी खाँसीमें— ऐसिड हाइड्रो लाभदायक है। यक्ष्माकी खाँसी अगर रातमें बढ़े और खाँसीके साथ ही साथ थोड़ा बलगम और उसमें खूनके छींटे मिले रहें, तो- लॉरोसिरेसससे लाभ होता है ( लेकनेन्थिस, एकालिफा देखिये ) ।
अकड़न- इस रोग में अगर ऊपर बताये धनुष्टङ्कारके सब या थोड़े लक्षण मिलें, तो— हाइड्रोसियानिक ऐसिडका व्यवहार करना चाहिये ।
शूलका दर्द ( colic )- गैस्ट्र लजिया या पाकाशयका शूल, पेटमें जोरका दर्द, थोड़ा खाली होते ही दर्द बढ़ जाना ।
हदूरोग–कलेजेमें बहुत धड़कन, नाड़ी कमजोर और असम, सारा शरीर ठण्ठा, कलेजे में तकलीफ देनेवाला दर्द। एजाइना-पेक्टोरिस ( हत्शूल ) ।
- ज्वर - किसी भी ज्वर में यदि अचानक नाड़ी छूटकर रोगीकी हालत खराब हो जाये, तो— सबसे पहले हाइड्रोसियानिक ऐसिडको स्मरण करना चाहिये ।
विषक्रिया नाशक – एमोन कार्ब, केम्फर, ओपियम । क्रम – ३x, ३० शक्ति |
Post a Comment