एकोनाइट नेपेलस के फायदे | Aconite Napellus Uses in Hindi - Saralpathy

एकोनाइट नेपेलस के फायदे | Aconite Napellus Uses in Hindi

एकोनाइट नेपेलस-होमियोपैथीकी एक प्रधान दवा है। स्पाइनल नर्वस सिस्टम पर अर्थात् मस्तिष्क और मेरुमज्जा के स्नायु मण्डलपर इसकी प्रधान क्रिया होती है, ज्वर

 एकोनाइट नेपेलस (Aconite Napellus )


[ काष्ठविष, डकरा - एक तरहके वृक्षसे तैयार होता है। इस वृक्षको अमेरिकामें खेती होती है। एशिया, मध्य यूरोप और हिमालय पहाड़में भी यह बहुत ज्यादा पैदा होता है ] - एकोनाइट पाँच प्रकारका होता है– (१) एकोनाइट नेपेलस ; (२) एकोनाइट कैमारम ( aconite cammarum ) ; ( (३) एकोनाइट फेरॉक्स ( aconite ferox ) ; (४) एकोनाइट लाइकोटॉनम ( aconite lycotonum ) ; (५) एकोनाइट रैडिक्स (aconite radix ) ।


इनमें से एकोनाइट नेपेलसका टिंचर-पेड़ में फूल आनेके समय फूल, कली, पते और सारे वृक्षसे : एकोनाइट कैमारम-ताजी जड़से; एकोनाइट फेरॉक्सजड़से; एकोनाइट लाइकोटॉनम - पेड़ में फूल खिलनेके समय लता-पत्तोंसे ओर  एकोनाइट रैडिक्स-जड़से तैयार होती है। इन पाँच प्रकारके एकोनाइट में – एकोनाइट कैमारम- प्रायः चिकित्साके काममें व्यवहृत ही नहीं होती ; एकोनाइट लाइकोटॉनम-गर्दन के पिछले भाग, बगल, स्तन वगैरहकी गाँठों की सूजनमें; एकोनाइट रैडिक्स-हैजामें और एकोनाइट फेरॉक्सहृत्पिण्ड या फेफड़ेकी बीमारीमें-जब रोगीको श्वासकष्ट, जल्दी-जल्दी श्वास लेना-छोड़ना पड़ता है, हाँफा करता है, सो नहीं सकता, जिससे बैठा रहता है। दम रुक जानेका भाव होना इत्यादि कई लक्षणों में सुफलके साथ व्यबहुत होता है। एकोनाइट नेपेलस-होमियोपैथीकी एक प्रधान दवा है। सेरिब्रो स्पाइनल नर्वस सिस्टम पर अर्थात् मस्तिष्क और मेरुमज्जा के स्नायु मण्डलपर इसकी प्रधान क्रिया होती है। एकोनाइटके द्वारा धमनी (आर्टरी) और कैपिलरीकी (कैशिका नाड़ियोंकी रक्त संचालन क्रिया बन्द होकर शरीर में कितनी ही जगह, जैसे- मस्तिष्क मेरुमज्जा, श्लैष्मिक-मिल्ली ( mucous and serous membrane both), पेशी, सन्धियाँ, पाकस्थली, फेफड़ा, हत्पिण्ड, यकृत, श्वासनली ( ब्रॉङ्काई), प्लुरा ( फुसफुस-वेष्ट ), गलनली आदिमें – रक्त की अधिकता ( कॉन्जेस्शन ) और प्रदाह हो जाता है, इसीलिये हमलोग कितनी ही तरहके प्रदाहमें और उसकी वजहसे पैदा हुए बुखारकी पहली अवस्थामें इसका व्यवहार करते हैं; और इससे विशेष लाभ भी होता है। एकोनाइट द्वारा शरीरके भीतरवाले किसी यन्त्रमें परिवर्तन (organic change) नहीं होता, सिर्फ यन्त्रोंकी क्रिया में परिवर्तन होता है (functional)। हृत्पिण्डपर इसकी क्रिया रहने के कारण यदि हृत्पिण्डकी किसी बीमारी में इसका प्रयोग होता भी है, तो रोगको उस समयके लिये घटा देनेके वास्ते (palliative)। जो हो, किसी भी बीमारी में यदि एकोनाइटका प्रयोग करना हो, तो सबसे पहले इसके चरित्रगत या विशेष लक्षण, जैसे— बहुत ज्यादा छटपटाना, भय, चलने-फिरने में हर वक्त शंका और भय, मृत्यु-भय, मुँहसे कहता है कि मैं अब न जीयूँगा, मुझे बचा न सके, तेज प्यास, बहुत ज्यादा परिमाणमें पानी पीना, जल्दी-जल्दी पानी पीना, पानीके सिवा और चीजें तीती मालूम होना ( बायोनियामें सभी तीता मालूम होता है), अन्तर्दाह किन्तु शरीरका कपड़ा उतारते ही जाड़ा मालूम होना, तेज और कड़ी मोटी नाड़ी, पसीना एकदम बन्द, रात में उपसर्गोंका बढ़ना, सूखी ठण्ठी ( उत्तर-पश्चिमी ) हवा लगने या पसीना -

बन्द होने अथवा डरनेसे रोग पैदा हो जाना— इन कई लक्षणोंपर सबसे पहले नजर रखनी होगी।


ज्वर हो या प्रदाह, अथवा कोई भी दूसरी बीमारी ही क्यों न हो, यदि वह एकोनाइटको बीमारी है, तो रोगका आक्रमण एकाएक होगा और देखतेदेखते रोग लक्षण बढ़ जायेंगे। यदि ज्वरमें यह दिखाई दे कि दाह बहुत जोर का है, प्यास तेज है, भीतरी दाह और टपटी है तथा रोगी तकलीफसे एकदम बेचेन हो रहा है, नाड़ी बहुत तेज, स्थूल ( मोटी) और तारकी तरह कड़ी है, शरीरपर जरा भी पसीना नहीं है, त्वचा सूखी और रूखी है तो- एकोनाइट दें, साथ-साथ फायदा मालूम होगा। ज्वरमें हमलोग हमेशा पहले - एकोनाइट, बेलेडोना, बायोनिया, जेलसिमियम इत्यादि दवाएँ व्यवहार करते है, नीचे इनका पार्थक्य देखिये। एकोनाइटके साथ कभी भी किसी दबाका पर्यायक्रमसे प्रयोग न करें। यदि एकोनाइटकी बीमारी होगी तो वह केवल एकोनाइटसे ही आरोग्य हो जायगी।


एकोनाइट—इसके बुखारमें पसीना बिलकुल ही नहीं आता, रोगीमें अन्तर्दाह, छटपटी, इधर-उधर करवट बदलना, प्यास और मृत्युभय बहुत अधिक रहता है। इसमें हत्पिण्ड और वक्षस्थलमें अधिक तकलीफ होती है, रोगी विकारमें अण्ड-बण्ड नहीं बकता, नाड़ी खूब स्थूल और वेगवती रहती है। एकोनाइटस्वल्पविराम या सविराम प्रकारके बुखारमें बिलकुल ही लाभ नहीं पहुँचाता ; तेज और लगातार बने रहनेवाले ज्वरमें ही लाभदायक है। पसीना होनेपर इसकी सभी यन्त्रणाएँ शान्त हो जाती हैं, अतः पसीना होनेपर फिर इसकी जरूरत नहीं रहती ( फेरम फॉस देखिये )। ज्वर बढ़नेके समय खाँसीका बढ़ना और खाँसनेपर सिर और छातीका दर्द बढ़ना भी - एकोनाइटका एक दूसरा लक्षण है।


बेलेडोना-बुखारमें रोगीका शरीर बहुत गर्म रहता है, इतना गर्म कि हाथ जलने लगे, बीच-बीचमें पसीना होता है और कभी-कभी तो पसीना इतना ज्यादा होता है कि ऐसा मालूम होता है अब ज्वर छूट जायगा शरीर वैसा ही गरम और बुखार ज्यों-का-त्यों ही बना रहता है। में—जो अङ्ग दबा हुआ रहता है, वहीं अधिक पसीना होता है। दर्द, माथेमें बहुत अधिक यन्त्रणा, रोगी अंडबंड बका करता है, परन्तु तुरन्त बेलेडोना इसमें सिरकोई जानवर या भूत या कोई काल्पनिक छाया देखकर डरता है, नींद आती है पर सोता नहीं, रोगी रह-रहकर चौंक उठता है, इसमें मस्तिष्क के लक्षण ही अधिक प्रबल रहते है।

ब्रायोनिया-रोगी गुमसुम पड़ा रहता है, इसके रोग लक्षण हिलने-डोलने से बढ़ते हैं, कलेजे में न जाने कैसा मालूम होता है; आँख, कनपटी और माथे में बेतरह दर्द होता है, यह दर्द हिलने-डोलनेसे ही बढ़ता है, यहाँ तक कि आँख खोलते ही बढ़ता है, इसलिये रोगी आँख बन्द किये चुपचाप पड़ा रहता है। समूचे शरीरमें दर्द होता है जो हिलने डोलनेपर बढ़ता है, दबा देने पर आराम मालूम होता है। रोगीके उठके बैठने या सिर उठानेपर जी मिच लाने लगता है और सिर में चक्कर आ जाता है, मुँहका स्वाद तीता रहता है, जीभपर पीला या सफेद लेप-सा तथा जीभ सूखी रहती है। थोड़ा-बहुत पसीना होता है, हिलने-डोलनेपर पसीना आता है, कभी पसीना एकदम नहीं रहता । -


जेलसिमियम - रोगी तन्द्रासे आच्छन्न और बेहोश-सा चुपचाप पड़ा रहता है, बोलता भी नहीं और आँख खोलकर देखता भी नहीं; इसमें प्यास ऐसी कुछ ज्यादा नहीं रहती। बच्चोंके बुखार में यह लक्षण रहे तो - यह अचूक दवा है। जेलसिमियम में- स्नायविक दुर्बलताके कारण रोगी चुप पड़ा रहता है। -


- अब देखना चाहिये कि एकोनाइटका प्रयोग किस ढंगके ज्वर में करना चाहिये ? एकोनाइट–सर्दी-ज्वर (synochal), प्रबल (sthenic ) और अविराम प्रकारके ( बराबर बना रहनेवाला-continued ) ज्वर में उपयोगी है। जेलसिमियम – सविराम और स्वल्प विराम दोनों प्रकारके ज्वर में उपयोगी है। एकोनाइट-टाइफॉयड, इण्टरमिटेण्ट ( सविराम ) या रेमिटेण्ट (स्वल्प-विराम ) प्रकारके ज्वरमें बिलकुल ही फायदा नहीं करता। टाइफॉयड ज्वरमें— नाड़ीकी तेज गति और तापको घटाने के लिए एकोनाइटका प्रयोग करना भयंकर भूल है। एकोनाइटके ज्वरमें नाड़ी full, hard and bounding ( भरी, कड़ी और उछलती हुई ) रहती है। जेलसिमियममें - full and flowing ( भरी और मृदु ) और एपिसमें— accelerated, full and strong ( वेगवती, पूर्ण और कठिन) या fluttering, wiry and frequent यानी फड़कती हुई, तारकी तरह महीन और मृदु रहती है। एकोनाइटकी नाड़ी हाथमें तारकी तरह कड़ी और मोटी और जेलसिमियमकी नाड़ी - केंचुएंकी तरह कोमल मालूम होती है।


फेरम फॉस- एकोनाइटकी तरह प्रादाहिक ज्वरकी अवस्थामें व्यवहृत होता है। यह एकोनाइट और जेलसिमियमके बीचकी दवा है; अर्थात् एकोनाइटके छटपटी इत्यादि लक्षण और जेलसिमियमका अभिभूत-भाव आदि इसमें नहीं है। फेरमकी नाड़ी - full, bounding and soft अर्थात् पूर्ण, उचलती हुई और कोमल रहती है ; प्रादाहिक रोगमें प्रदाहवाली जगहमें रससंचय (exudation ) होनेके पहले एकोनाइटकी तरह यह भी - प्रथमा वस्था में व्यवहृत होता है और कण्टिन्यूड (अविराम), रेमिटेण्ट (स्वल्प-विराम) इत्यादि प्रायः सब तरहके ज्वरोंमें लाभ पहुँचाता है ( फेरम फॉस अध्याय देखिये |


- एक-ज्वर और सर्दी-ज्वर ( continued and synochal fever ) - इस ज्वरकी पहली अवस्था में एकोनाइट लाभदायक है। जिस रोगीमें - मृत्यु भय, छटपटी, मानसिक चंचलता, शरीरमें दाह, त्वचा सूखी, पसीना होनेपर सब उपसर्गौका घट जाना तथा जिसे सर्दी लगकर बुखार आता है अथवा पानी में भींगने के कारण या पसीना होनेके बाद सर्दी लगकर ज्वर होता हैउसके लिये - एकोनाइट लाभदायक होता है। जब एकोनाइटके प्रयोग से ऊपर लिखे लक्षण न घटें, शरीरकी गर्मी और दूसरे-दूसरे उपसर्ग कुछ भी कम न हों, रोगी धीरे-धीरे कमजोर, सुस्त और अभिभूत हो पड़े, बोली जकड़ जाये और ऐसा मालूम हो कि शायद विकार हो गया है, उस समय २-१ मात्रा सलफर प्रयोग करें – इससे बहुत लाभ होगा। निमोनिया-रोगकी पहली अवस्थामें बहुत अधिक श्वासकष्ट, श्वास - कृच्छ्रता रहे तो वेरेट्रम विरिडिसे लाभ होता है; इसका कितने ही मौकोंपर ज्वरमें एकोनाइटके बदले प्रयोग किया जाता है; पर वेरेट्रम विरिडिका २-४ मात्रासे अधिक कभी भी व्यवहार न करें, क्योंकि इससे हत्पिण्डकी क्रियामें गड़बड़ी होकर रोगीकी अवस्था बहुत खराब हो सकती है।


ज्वरमें एकोनाइटके व्यवहारके सम्बन्धमें डॉ० फेरिंगटनका मत :


किसी भी बीमारीमें, रोगके साथ कोई एक उपसर्ग - प्रबल ज्वर रहनेपर पहले एकोनाइटसे उस ज्वरको दूर कर उसके बाद दूसरे दूसरे उपसर्गों के लिए दूसरी दवा देनी चाहिए - ऐसी धारणा बना लेना एकदम गलत है। जैसेकिसी व्यक्तिको आरक्त-ज्वर ( स्कार्लेट फीवर) हुआ है, रोगीको बहुत अधिक बुखार है ( १०४ या १०५ डिग्री ), शरीर खूब गरम है, त्वचा सूखी और उत्तप्त, नाड़ी तेज और कड़ी, कमरमें दर्द, वमन, गलेके भीतर दर्द और लाली, गलेमें जखम आदि कितने ही लक्षण वर्त्तमान हैं, तो वहाँ पहले कहे हुए कई लक्षण अर्थात् – तेज ज्वर, कड़ी नाड़ी, सूखी त्वचा आदि कई लक्षणोंपर निर्भर कर या केवल बुखार घटा देनेके लिए कभी भी एकोनाइटका प्रयोग न करें । हमें वही दवा देनी चाहिए जिससे उद्भेदके निकल आने में सहायता पहुँचे । आरक्त-ज्वरमें – एकोनाइट बिलकुल ही फायदा नहीं करती; पर यदि एकोनाइटके मानसिक लक्षण – मृत्यु- भय, छटपटी आदि स्पष्ट दिखाई दें तो उक्त इरप्टिव ज्वरमें (उद्भेद-ज्वरमें) उसका प्रयोग किया जा सकता है। इतनेपर भी एकोनाइटका प्रयोग होनेके कारण १०० में ६० मनुष्योंको हानि ही पहुँचेगी। - परन्तु


प्रादाहिक पीड़ा- इस रोगकी पहली नयी अवस्थामें एकोनाइट लाभदायक है । दर्द ही सब तरहके प्रदाहोंका प्रधान लक्षण है ; वातका दर्द हो या शूलका अथवा न्यूरैल्जिया ( स्नायुशूलका दर्द ) हो— एकोनाइटके प्रधान लक्षण– छटपटी, भय और तेज प्यास रहनेपर एकोनाइटसे अवश्य ही लाभ होगा। दर्द के लिए - एकोनाइटके सदृश और भी दो दवाएँ हैं- कैमोमिला और कॉफिया एकोनाइटका दर्द काटने फाड़नेकी तरह होता है और उसके साथ ही यह भय रहता है कि न जाने किस समय क्या होगा, रोगवाली जगहको छूने नहीं देता। कैमोमिलामें- भीतरी तकलीफ, प्यास अथवा ज्वर नहीं रहता, पर रोगी दर्द से छटपटाता है, गुस्सा होता है और कड़वी बातें कहता है। कॉफियामें-ज्वर या प्यास बिलकुल ही नहीं रहती, मिजाज भी तेज नहीं होता पर रोगी कहता है— दर्द न घटा तो मर जाऊँगा । दर्दसे इधर-उधर करवट बदलना - रस टक्समें है; पर प्रभेद यह है कि एकोनाइटमें उद्वेगके कारण रोगी छटपटाता है और रस टक्समें अकड़न, ऐंठनका दर्द, हिलने-डोलनेसे दर्द घटनेके ख्यालसे रोगी करवट बदलता है। आर्सेनिकमेंमृत्यु-भय और छटपटी है; पर एकोनाइटकी तुलना में वह बहुत थोड़ी है। भय- यदि डर जानेकी वजहसे कोई बीमारी हो तो— एकोनाइट अव्यर्थ औषधि है | डर जानेसे- बेहोशी, गर्भस्राव, मूर्च्छा, अतिसार, हैजा आदि चाहे जो हो जाये— एकोनाइट उपयोगी है। डरसे पैदा हुई बीमारियोंमेंइग्नेशिया, ओपियम, वेरेट्रम इत्यादिका व्यवहार होता है ( केनाबिस इण्डिका देखिए ) । एकोनाइटमें डरके कारण घरसे बाहर नहीं निकलना चाहता या किसी खेल तमाशे अथवा भीड़-भाड़की जगहमें नहीं जाना चाहता ; कोई बीमारी होनेपर डरसे कहता है कि मैं न जीयूँगा, मुझे कोई बचा न सका। -


वक्षःस्थलके रोग– प्लुरिसि ( फेफड़ेको ढँकनेवाले परदेका प्रदाह ), प्लुरोडाइनिया (कलेजेके बगल में सूई गड़नेकी तरह और वातकी भाँतिका एक तरहका तेज दर्द ), निमोनिया (फेफड़ेका प्रदाह), सर्दी, खाँसी, हृत्पिण्डमें या - हत्पिण्डके पासवाले स्थानमें दर्द और कलेजा धड़कना इत्यादि अधिकांश रोगों में एकोनाइट – पहली अवस्था में अर्थात् जब तक प्रदाइका लक्षण रहता है तब तक उपयोगी है। कलेजेमें बहुत तेज खोंचा मारनेकी तरह दर्द, उसके साथ ही ज्वर इत्यादि लक्षणोंके साथ एकोनाइटके विशेष लक्षण यदि मिल जायँ तो - एकोनाइट फायदा करता है। ब्रायोनियामें भी इसी भाँतिका खींचा मारनेकी तरह दर्द है, पर वह दर्द साँस खींचने, साँस छोड़ने या हिलने-डोलनेपर ही बढ़ता है ; खाँसनेके समय रोगी हाथसे कलेजा दबा लेता है, क्योंकि इससे उसे आराम मिलता है। ब्रायोनियाका रोगी–चुपचाप पड़ा रहता है और एकोनाइटके रोगीकी तरह उसमें अन्तर्दाह व छटपटी और शरीरका कपड़ा उतारनेपर जाड़ेका भाव नहीं रहता। ब्रायोनियासे लाभ न हो तो - एसक्लिपियस ।


दमा-खाँसी- इस रोगमें कोई एकोनाइटके व्यवहारको मानता है या नहीं, नहीं मालूम ; पर मैं दमाके खिचाव और श्वासकष्टकी पहली अवस्थामेंएकोनाइट २x शक्तिकी दो-तीन बूँद ४ आउन्स पानीमें मिलाकर उसका दो-एक चम्मच प्रत्येक आध या एक घण्टेके अन्तरसे सेवन कराता हूँ और सूर्यास्त के बाद कोई भी चीज खानेको मनाही कर देता हूँ। कितने ही स्थलोंपर इससे ४ घण्टेके भीतर ही दमा और उसकी हँफनीका वेग घट जाता है, इसके बाद - सेनेगा या लोबेलिया - २x शक्ति हर २-३ घण्टेके अन्तर से एक-एक मात्रा, नित्य ४-५ बार २-१ दिन सेवन कराता हूँ। इससे बहुत फायदा होता है (केनाबिस अध्याय देखिये ) । एकोनाइट - सर्दी लगनेकी वजहसे पैदा हुए और cardiac दमामें अधिक लाभदायक है। इरियोडिक्टियन , २x दमा व क्रॉनिक ब्राँङ्काइटिसकी उत्तम दवा । है -


- होमियोपैथी में ब्लैटा ओरियेण्टैलिस - यह इस देशके तिलचट्टोंसे तैयार होती है और दमा-खाँसीकी बहुत बढ़िया दवा है । ५-६ बूँद मूल टिंचर, ४ आउन्स पानी में मिलाकर उसको २-१ चम्मचकी मात्रामें हर १-२ घण्टेके अन्तरसे सेवन करानेसे श्वासकष्ट और दमाका तेज खिचाव तुरन्त दब जाता है (किसी-किसीका कथन है— उक्त शक्तिसे जल्दी फायदा होता है ) । मदर टिंचर की अपेक्षा - इसकी १x विचूर्ण - - स्थायी लाभके लिए - २०० या और भी उच्च शक्ति, एक या दो सप्ताह के अन्तरसे प्रयोग करना चाहिए। इस पुस्तकका'ब्लेटा' अध्याय देखिये )


- खाँसी – सर्दी लगकर सूखी खाँसी (एरालिया अध्याय देखिए ) | काली खाँसी- कूप खाँसीकी पहली अवस्था में अर्थात् जब तक प्रबल ज्वर, दम रुक जानेका भाव, सूखी खाँसी, गलेमें सौंय-साँय आवाज इत्यादि लक्षण रहे तमी तक एकोनाइट लाभ करता है, पर यदि ५-७ मात्रा दे देनेपर भी सदीं और खाँसीके खिंचाव में लाभ न हो, सिर्फ ज्वर कम हो, तोस्पंजिया व एकोनाइट निम्नशक्ति पर्यायक्रमसे प्रयोग करना चाहिये। इसके बाद जब खाँसी ढीली पड़ जाय अर्थात् गला घड़घड़ करने लगे तब - हिपर सलफर २०० शक्ति २-३ मात्रा प्रयोग कर दो-चार दिन कोई दवा न देने से खासा फायदा दिखाई देगा ( स्पंजिया अध्याय देखिये ) -


सर्दी- एकाएक ठण्ड लगकर नयी सर्दी हो गयी हो और उसके साथ ही सिरमें जोरका दर्द, नाककी जड़में दर्द, बेचैनी, नाकसे तरल सदी निकलने के साथ ही कभी-कभी रक्त भी गिरता है, छींक आती है, नाक सूखती है या नाकमें सर्दी थोड़ी रहती है।


अतिसार-मलका रङ्ग हरा, काला, पानीकी तरह, सॅवारकी भाँति, दस्तके साथ पित्त मिला रहता है, आँव मिली रहती है, पेटमें बहुत दर्द के साथ बार-बार पाखाना होता है। बच्चोंके पेट में दर्दके साथ हरे रङ्गका पाखाना । बच्चा हमेशा रोया करता है। सोता नहीं, बेचैन रहता है। यदि दिनमें गरमी, रातमें सर्दी पड़े - ऐसे समयकी बीमारी हो तो एकोनाइट सबसे अधिक लाभदायक दवा है ( ऐसे मौकेपर – २ x शक्ति दें, २-३ बूँद – ८ मात्रा ) । - -


- - आमाशय - आँव सफेद हो या रक्त-मिली, रोगकी पहली अवस्था में पाखाना परिमाणमें बहुत थोड़ा होता हो, उसके साथ केवल आँव या रक्त रहे और पेट में दर्द, कूथन, पाखानेका जल्दी-जल्दी वेग होना या पाखाना होना इत्यादि लक्षण, रहनेपर - एकोनाइट विशेष लाभ करता है (इसकी २x शक्ति की २-३ बूंद ८-१० मात्रा पानी में मिलाकर हर २-३ घण्टेके अन्तरसे प्रयोग करनी चाहिये )। मैंने देखा है-अधिकांश आमाशयकी बीमारी ऊपर कहे लक्षणों में, प्रायः एकोनाटसे आरोग्य हो जाती है। किसी दूसरी दबाकी जरूरत ही नहीं होती ।


अभिज्ञताका परिणाम - मैं आमाशयकी बीमारीकी पहली अवस्था में, यहाँ तक कि दो-तीन या चार दिनकी बीमारी हो जानेपर भी, यदि रोगी आता है तो बिना कोई विशेष लक्षण मिलाये, जल्दीमें एकोनाइट नेप २x शक्तिकी ४-५ बूँद, १०-१२ मात्रा पानीमें मिलाकर उसकी एक-एक मात्रा २-३ घण्टेके अन्तरसे प्रयोग करता हूँ ; और पेटमें दर्द अधिक रहनेपरकॉलोसिन्थ ०–२० बूँद, १ आउन्स ग्लिसरिनमें मिलाकर, उसकी २५-३० बंद पेटपर मालिश कर अथवा समान भाग जल मिलाकर, पेटपर भींगी पट्टी लगाकर उसपर गरम सेंक दें, रूई या फ्लानेलसे पेट बाँध देनेके लिये कहता हूँ । इससे यह नतीजा दिखाई देता है कि कितने ही रोगी आरोग्य हो जाते है ; एकदम आरोग्य न होनेपर भी पेटका दर्द वगैरह कुछ घट जाता है, इसके बाद लक्षणके अनुसार—कॉलोसिन्ध, मर्कुरियस, हिपर, कॉलचिकम, कैलि नाइट्रि आदि दवाओंका प्रयोग करता हूँ । पुरानी बीमारीमें- ट्राम्बिडियम, सलफर और हिपरसे उपकार होता है। अगर पेटमें दर्द ज्यादा न हो तो -चैपारो 8, दिनमें ४-५ मात्रा के हिसाबसे ५-६ दिन तक दें । -


पेशाबकी बीमारी-पेशाबका रङ्ग लाल, गरम और बहुत तकलीफ देनेवाला, परिमाणमें बहुत थोड़ा, पेशाब बन्द, रोगीका छटपटाया करना; चिल्लाकर रोना, लिङ्ग मुट्ठीमें पकड़े रहना, पेशाब बूँद-बूँद होना, खूनका पेशाब, मूत्रनलीमें जलन, पेशाबमें कूथन, पेशाब करनेके पहले भय मालूम होना । बच्चा पैदा होते ही यदि पेशाब बन्द हो जाये तो- एकोनाइटके प्रयोगसे लाभ होगा।


और उदरशूल अम्लशूलका दर्द - दर्द पैदा होनेका समय कोई बँधा नहीं रहता, कभी खाली पेट रहनेपर, कभी कुछ खा लेनेपर ही दर्द पैदा हो जाता है। रोगी छटपटाया करता है, किसी दवासे स्थायी लाभ अथवा थोड़ा भी फायदा नहीं होता, दर्दका वास्तविक कोई कारण भी नहीं पाया जाता, पेटमें जलन, ऐसे स्थलपर एकोनाइट नेप २ x शक्तिकी २-४ बूदें, १०-१२ मात्रा पानीमें मिलाकर - यदि खाली पेट रहनेपर दर्द बढ़ता हो तो – नित्य खाली पेटमें २-३ घण्टेका अन्तर देकर ४-५ बार और यदि खानेके बाद दर्द बढ़ता हो तो - प्रत्येक बार तुरन्त खानेके बाद ही ( 8 या २x ) दो-एक बूंदकी मात्रामें सेवन करानेपर सम्भवतः फायदा होगा। इसकी परीक्षा करनी चाहिये ( कॉलोसिन्थ अध्याय देखिये ) | - 1


अंग-प्रत्यंगका दर्द - रोगवाली जगह सुन्न या झुनझुनी पैदा हो जानेकी तरह ; हाथ-पैर बरफकी तरह ठण्डे और सुन्न, हाथ मानो टूटा, अकड़ा, भारी और सुन्न हो गया हो अथवा ऐसा दर्द होता हो जैसे किसीने मारा है, बाएँ हाथका दर्द ऊपर से नीचे उतरना ( कैक्टस, कैल्मिया आदिमें भी ये लक्षण हैं ) । वात, गठिया वात, गाँठोंका नया प्रदाह, घुटनोंकी कमजोरी, चलनेके समय पैरका ठीक जगहपर न गिरना, सब जोड़ोंके पेशी-बन्धन ( ligaments ) मानो ढीले पड़ गये हों, हिलने-डोलनेपर जोड़ोंके भीतर बिना दर्दकी एक तरहकी कटकट आवाज इत्यादि लक्षण भी एकोनाइटके अन्तर्गत हैं ( गुयेकम देखिये )। पीठ में दर्द, साँस लेनेके समय दर्द होना । •


हैजा - इस रोगकी पहली, दूसरी और तीसरी तीनों ही अवस्थाओंमें एकोनाइटका व्यवहार होता है। पहली अवस्था में - मलका रंग तरबुज घुले पानीकी तहर या पित्त-मिला, दिनमें गरमी और रातमें सर्दी पड़नेके समय बीमारी होने और पाखानेके समय मलद्वारमें गरमी मालूम होनेपर तथा पेटमें बहुत दर्द रहनेपर इससे फायदा होगा। फिर दूसरी अवस्था में - जब रोगी के मुँह से पेट तक जलन मालूम होती है, तेज प्यास रहती है पर पानी पीते ही के हो जाती है, बहुत छटपटाता है, बिना दर्दका चावलके धोवनकी तरह सफेद रंगका पाखाना होता है, चेहरा मुर्देकी तरह डरावना और नीला दिखाई देता है, सारा शरीर ठण्डा हो जाता है, नाड़ीं सूतकी तरह महीन हो जाती है या एकदम मिलती ही नहीं, उस समय यदि एकोनाइटके प्रधान लक्षण रहें तो – एकोनाइट अवश्य प्रयोग करें । यह हिमांग अवस्थामें भी ( शीत आ जाना ) – लाभदायदक है; और जिस हैजामें ऐंठन नहीं होती या बहुत कम ऐंठन रहती है, उस हैजाकी अर्थात् अनाक्ष पिक जातीय ( बिना अकड़नवाले ) हैजाकी उत्तम दवा है। एकाएक या धीरे-धीरे हार्टफेलियोर ( heart failure— कलेजेकी धुकधुकी बन्द हो जाना ) होनेकी सम्भावनामें इससे तुरन्त लाभ होता है; पर यह स्मरण रखना चाहिये कि उसमें छटपटी, मृत्युभय वगैरह कितने ही मानसिक लक्षण रहने चाहिये, नहीं तो उतना लाभ नहीं होगा। जिस समय हैजा फैलो (cholera epidemic) रहता है उस समय कितनों ही को डरसे हैजा हो जाता है, एकोनाइट ही उसकी प्रधान दवा है। एकोनाइटके प्रयोगसे दबी नाड़ी उठ जाती है और जीवनी शक्ति उत्तेजित हो उठती है । २-३ बूँद–० या २x शक्ति २ आउन्स पानी में मिलाकर, एक या दो चम्मचकी मात्रा में १० से ३० मिनटका अन्तर देकर प्रयोग करना चाहिये। कितनों ही का ऐसा कहना है कि हैजामें – एकोनाइट नेपकी अपेक्षा – एकोनाइट रैडिक्स अधिक लाभ करता है ( मैं एकोनाइट रैडिक्स २x शक्ति अधिक व्यवहार करता हूँ ) । ऊपर लिखी बीमारियों के अलावा - एकोनाइट और भी कितनी ही बीमारियोंमें व्यवहृत होता है। नीचे संक्षेपमें उनका विवरण दिया जाता है :रजोरोध – डरकर रक्तस्राव बन्द होनेपर – एकोनाइट लाभ करता है। -


मस्तिष्क में रक्त संचालन – ( माथे में रक्त चढ़ जाना ) – एकाएक धूप लगकर या क्रोध आनेकी वजहसे अगर माथेमें रक्त अधिक चढ़ जाये और कोई बीमारी हो पड़े तो - एकोनाइट फायदा करेगा । ग्लोनोयन और बेलेडोना भी इस रोगकी दवा है। जहाँ नींद लगी अवस्था में या एक जगह स्थिर भाव से रहनेपर, माथमे अधिक धूप लगकर कोई बीमारी पैदा हो जाये, वहाँ एकोनाइट लाभ करता है; और जहाँ ज्यादा देर तक धूपमें घूमनेकी वजह से बीमारी पैदा होती है, वहाँ बेलेडोना और ग्लोनोयन काम करता है; एकोनाइटसे हृत्पिण्डकी क्रिया पहले तेज और जोरकी होती है, फिर धीरे-धीरे घटती जाती है। मिनट में १२०-१३० बार स्पन्दन होता है।


सिर दर्द - ठण्ड लगकर सर्दी हो, सर्दी बैठकर सिर भारी और सिर में दर्द पैदा हो जाना। माथेका दर्द - सिरके भीतरकी ओरसे आरम्भ होकर क्रमशः बाहरकी ओर आता है, माथेमें टपक होती है ; कपाल, दोनों कनपटियों, आँख और ऊपरी जबड़ेमें दर्द होता है। माथेमें खून इकट्ठा हो जाता है और जलन होती है।


हत्पिण्डकी बीमारी-सर्दी-गर्मी, हरिपण्डकी कमजोरी, कलेजा धड़कना, मूर्च्छा हो जानेका उपक्रम ( pulse full, hard, tense and bounding, sometimes intermittent- अर्थात् नाड़ी भरी, कड़ी, तनी और उछलती हुई, कभी-कभी सविराम ) । हृत्पिण्ड में गड़बड़ीकी वजहसे श्वांसमें तकलीफ, रोगी बिलकुल ही सो नहीं सकता, बाध्य होकर उसे उठके बैठना पड़ता है, अन्धड़की तरह तेजीसे श्वास-प्रश्वास चला करता है, ऐसा मालूम होता है कि हृत्पिण्डकी क्रिया अचानक बन्द होकर अभी मर जायगा; इस तरहके लक्षणोंमें - एकोनाइट पेरॉक्स ( aconite ferox ) - २x से ३ x शक्ति विशेष फायदा करती है। यह एकोनाइट नेपेलसकी बनिस्वत ज्यादा तेज विष है। एकोनाइट नेपकी अपेक्षा इसकी बुखार छुड़ानेकी शक्ति कम और पेशाब उत्पन्न करनेकी शक्ति ज्यादा है - ।


हत्पिण्ड या फेफड़े में खून इकट्ठा होकर-कलेजे में दर्द, कलेजा धड़कना, श्वासकष्ट, जोरसे साँस खींचनेमें तकलीफ, चलनेसे तकलीफ और दर्द का बहुत बढ़ जाना इत्यादि उपसर्गों में - एकोनाइट लाभदायक है। ऐसे स्थलपर एकोनाइट – २x – ३x निम्न शक्तिका प्रयोग करना चाहिये । - -


- निमोनिया – जब तक श्वासनलीमें रक्त संचयके कारण प्रदाह रहता है तब तक एकोनाइट, उसके बाद खाँसी जरा ढीली और तकलीफ देनेवाले लक्षण दूर हो जानेपर – ब्रायोनिया इत्यादि दवाओंका व्यवहार करना चाहिए। श्वास-प्रश्वास में बहुत कष्ट, साँस लेनेमें खिचाव, हाँफना, तेज और स्थल नाड़ी इत्यादि लक्षणोंमें-वेरेट्रम विरिडि फायदा करता है। एकोनाइटमेंदाहिनी करवट सो नहीं सकना और मूर्च्छाका भाव होता है, उउनेपर जी मिचलाता है, नाड़ीकी गति धीमी रहती है। शरीरमें ठण्डापन रहता है ( ऐण्टिम टार्ट, हिपर सलफर देखिये ) ।

रक्तोत्कास ( खून मिली खाँसी ) – निकला हुआ रक्त ताजा, चमकीला 'लाल, जरा-सा भी खाँसनेपर बिना तकलीफके रक्त निकलना और उसके साथ मृत्यु-भय । मिलिफोलियममें भी – बिना तकलीफके रक्त निकलता है; पर इसमें एकोनाइटकी तरह उद्योग या बेचेनी इत्यादि कुछ नहीं रहती (एका लिफा और हैमा मेलिस अध्याय देखिये ) ।


प्लुरिसि या प्लुराइटिस- इस रोगकी पहली व्यवस्थामें जब बुखार खूब तेज रहता है, जाड़ा मालूम होता है, पसीना नहीं होता, कलेजे में खोंचा मारनेकी तरह दर्द होता है और जलन रहती है, उस समय एकोनाइट लाभ करता है। उसके बाद ब्रायोनिया इत्यादि दवाकी जरूरत होती है ( उनके अध्याय देखिये ) ।


* आँखकी बीमारी- सर्दी लगकर या सर्द हवा लगकर आँखें आना ; इसके अलावा - अगर एकाएक किसी कारणसे आँखों में प्रदाह हो जाये, आँख फूल जाये, लाल हो, आँखके भीतर गर्मी मालूम होती हो, जैसे आँख में बालू पड़ गई हो, जल होती हो, आँखसे पानी बहता हो, आँख खोली या देखा नहीं जाये ये लक्षण रहें तो- एकोनाइटसे लाभ होगा। आँख में हवा और सूर्य की रोशनी बिलकुल सहन नहीं होती ( बाहरी प्रयोगके लिए मैजेण्टा लोशन दें


कानकी बीमारी- मनुष्य स्वस्थ है, किसी तरहकी तकलीफ नहीं, ऐसे में एकाएक कानके भीतर तकलीफ, कुटकुटाहट, टपकका दर्द होने लगना, कभीकभी एकाएक सर्दी लगकर इस तरहका दर्द होना और उसके साथ ही ज्वर और एकोनाइटकी चरित्रगत छटपटी, भय इत्यादि लक्षण रहना। कभी-कभी सुननेकी ताकत तेज हो जाती है, किसी तरहकी आवाज - खासकर गानेबजानेका शब्द – सहन नहीं होता । -


दाँतकी बीमारी- सर्दी लगकर दाँतकी जड़ फूल जाना, दर्द, कनकनी इत्यादि होनेपर – पहली अवस्थामें एकोनाइट लाभ करता है ।


- प्रमेह ( सूजाक ) - पहली अवस्था में जल्दी जल्दी पेशाब लगना, पेशाब करने के समय जलन, पेशाब गरम, बहुत थोड़ी मात्रामें सूजाकका मवाद निकलना, और साथ ही बुखार, प्यास, भय इत्यादि लक्षण रहनेपर - एकोनाइट २x - ३ x शक्तिसे फायदा होगा। २-३ बूँद दवा - १०-१२ खुराक पानी में मिलाकर, उसकी एक-एक मात्रा २-३ घण्टेके अन्तरसे तब तक सेवन करनी चाहिए जब तक फायदा न हो ( कैनाबिस इण्डिका देखिये ) । -


दूधका बुखार ( दुग्ध-ज्वर ) - स्तन प्रदाहकी पहली अवस्था में


बेचेनी, प्यास,


गरम, लाल, फूला, चिलक मारनेकी तरह दर्द और साथ ही ज्वर इत्यादि रहनेपर- एकोनाइटका प्रयोग करना चाहिए (इस रोगकी देखिये ) । दूध-ज्वरमें - खड़ी मसूर की दाल पीसकर स्तनमें गरम पुल्टिस लाभदायक दबायें है- बायोनिया, फाइटीलेका इत्यादि ; बायोनिया अध्याय देनेपर तकलीफ घट जाती है । ताकि हिले नहीं । स्तन हमेशा ऊँचाकर बाँधे रखना चाहिए, रोगवाली करवट


• वृद्धि - सन्ध्या में, रातमें, गरम घरमें, बिछौनेसे उठनेपर, सोनेपर ।


ह्रास खुली हवामें ।


; चोटमें


सम्बन्ध - ज्वरके असह्य दाह और तकलीफ में – कॉफिया आर्निका । एकोनाइट- सलफरका अनुपूरक है; जहाँ नयी बीमारीमेंएकोनाइट, वहाँ रोग पुराना होनेपर - सलफरका प्रयोग करना चाहिए । अधिक मात्रामें सलफरका सेवन हो जानेपर- एकोनाइट उसकी प्रतिषेधक दवा है । , इपि, मर्क, पल्स,


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• बादकी दवा - आर्स, बेल, ब्रायो, कैल्के, केन्थर, हिपर-- रस, स्पञ्जि, सल्फ, साइलि


क्रियानाशक–एसेटिक ऐसिङ, बेल, बार्बोरस, कॉफिया, सल्फ। क्रियाका स्थितिकाल - १ दिन । क्रम – २x, ३० शक्ति ।


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