ऐक्टिया रेसिमोसा के फायदे | Actaea Racemosa Uses in Hindi
ऐक्टिया रेसिमोसा ( Actåa Racemosa ) | Actaea Racemosa Uses in Hindi
- [ अमेरिका के एक प्रकारके वृक्षसे टिंचर तैयार होता है ] - इसका एक दूसरा नाम है सिमिसिफ्यूगा । स्त्रियों की नाना प्रकारकी बीमारियोंमें तथा वात रोगमें ही इसका अधिक व्यवहार होता है। इसके मानसिक लक्षणलगातार क्षोभपूर्ण और सुस्त रहना, नींद न आना, रोगी सोचता है कि मैं पागल हो जाऊँगा, जी घबड़ाता है और लम्बी साँस लेता है। यह मेरुमज्जाके स्नायु ( spinal nerves ) और उसके ऊपरी अंशपर ( upper part of the cord ) अपनी क्रिया प्रकट करके मस्तिष्क-झिल्ली प्रदाह के (मेनिञ्जाइटिस) प्रायः अधिकांश लक्षण और शरीरकी बायीं ओर अधिक क्रिया प्रकट करता है, इसलिये इसके द्वारा - बायें डिम्बकोष का प्रदाह, डिम्बकोषका स्नायविक दर्द, बायें उरुमें स्नायविक दर्द, बायीं ओरके गर्दन और कन्धेमें दर्द, बात, गर्दन कड़ी या अकड़ जाना इत्यादि नाना प्रकारकी बायें अंगों की बीमारियाँ आरोग्य होती है।
चरित्रगत लक्षण :
(१) सूतिका - उन्माद, मनमें ऐसा समझना कि पागल हो गयी है, अपनेको नष्ट कर देनेकी चेष्टा करना; (२) ऐसा सोचना कि एक गहरा काला बादल उसे ढके हुए है और चारों ओर अन्धेरा है; (३) आँखोंमें स्नायुशूलका दर्द, चक्षु- गोलकमें तेज दर्द और उस दर्द का होना कनपटीमें, माथेके बीचके मागमें और क्रमशः गर्दन के पिछले भाग तक उतर आना; (४) जरायु या डिम्बकोषकी प्रत्यावर्तित क्रिया ( reflex action ) की वजहसे हृत्पिण्डमें दर्द, एकाएक हत्पिण्डकी क्रिया बन्द-सी हो जाना, इससे श्वास रुक-सा जाना, जरा हिलने-डोलनेसे ही कलेजा धड़कना, बायें स्तनके नीचे तेज दर्द ; (५) अनियमित और तकलीफ के साथ ऋतुस्राव, सर्दी लग जाना, मानसिक गड़बड़ी की वजहसे और ज्वर आदि कारणोंसे देरसे ऋतु होना या ऋऋतुस्राव रुक जाना ; (६) ऋतुके समय ताण्डव ( कोरिया ), गुल्मवायु ( हिस्टीरिया ), मस्तिष्क व मानसिक गड़बड़ी इत्यादि ; (७) गर्भावस्था में वमन, नोंद न आना, प्रसव के बादका दर्द, ३रे महीने में गर्भस्राव ; (८) प्रसव के दर्दके समय भयानक कँपकँपी, जाड़ा मालूम होना, मानसिक विकार, जरायुका मुँह कड़ा, अकड़नका दर्द ; (६) गर्भके अन्तिम २-१ महीने में इसका प्रयोग करनेपर प्रसवकी तकलीफ घट जाना; (१०) गर्दन, मेरुदण्ड, पीठ और कमरमें वातको तरह दर्द ; (११) वात-रोगवाली स्त्रियोंका बाधक- दर्द; (१२) दर्द की गति बिजलीकी लहरकी तरह ।
मेनिञ्जाइटिस ( मस्तिष्क - झिल्ली प्रदाह ) - सभी मतके चिकित्सकोंको यह स्वीकार करना पड़ेगा कि इस रोगकी प्रायः दवा है ही नहीं, इसमें फीसदी ६०-६५ की मृत्यु हो जाती है। यदि आपके हाथमें कोई रोगी आये और कोई दवा देकर यदि फायदा न दिखाई दे, तो वृथा समय नष्ट न करके g - - पहले – सिमिसिफ्यूगा – ३ x शक्ति, १॥ या दो घण्टेके अन्तरसे ५-६ मात्रा प्रयोग करके अन्तमें मेडोरिनम - २०० शक्ति, एक मात्रा खिलाकर ४-४ घण्टे तक राह देखें, यदि पूरा-पूरा फायदा न दिखाई दे तो - अन्तमें लाइकोपोडियम२०० शक्तिकी एक मात्रा और आँखें लाल रहनेपर बेलेडोनाका प्रयोग करें। बहुत सम्भव है कि इसीसे लाभ हो जाय। इस पुस्तकमें लिखा जिङ्कनका अध्याय भी पढ़ें ।
स्त्री रोग जरायु की बीमारी, उसमें काँटा गड़ने की तरह दर्द; तलपेट में एक ओरसे दूसरी ओर तक दर्द- यह दर्द तीरकी तरह तेजीसे परिचालित होता है-कमरमें तेज दर्द, जरायुमें प्रसव के दर्द की तरह वेग और दर्द, उससे ऐसा मालूम होना कि योनिद्वार से पेटकी सब नस-नाड़ियाँ बाहर निकली आ रही हैं ; वातसे पैदा हुआ बाधकका दर्द, ऋतु अनियमित- कभी कम, कभी खूब अधिक, कभी समयपर, कभी देरसे, कभी पहले ही हो जाना; सिर में दर्द; कूल्हे और उसमें भार मालूम होना और दर्द इत्यादि इसके विशेष लक्षण हैं। ऐक्टिया रेसिमोसामें- समयपर होनेवाला ऋऋतुस्राव परिमाण में अधिक ही होता दिखाई देता है। ऐक्टिया प्रसूताओंको तीसरे महीने गर्भस्राव ( सेबाइना ), कष्टकर प्रसवका दर्द, उसके साथ ही मूर्च्छा, प्रसव के बाद का तेज दर्द, दर्द उरु तक चला जाना, बायीं छातीमें (स्तनमें भीतरकी ओर ) सूइ गड़ने की तरह दर्द इत्यादिमें देनेसे विशेष लाभ होता है। गर्भवतियोंको यदि नवें महीने इसका सेवन कराया जाये तो प्रसव आराम से होता है । प्रसव के बाद लोकियाका स्राव ( पीबकी तरह क्लेदका स्राव ) बन्द होकर या किसी दूसरे कारणसे बुखार, सिरमें दर्द, विकारका लक्षण, प्रलाप बकना, चिल्लाना, भूतका भय, उन्माद-सा होना इत्यादि उपसर्ग दिखाई दें और उसमें बेलेडोना, स्ट्रै मोनियम, हायोसियामसके लक्षण रहें, तो भी पहले- सिमिसिफ्यूगाका प्रयोग कर देखना उचित है। सौरीमें ही प्रसूताओंको उन्मादरोग हो जानेपर – इससे बहुत फायदा होगा। प्रसव के बाद जरायुमें संकोचनके लिये यह वर्गट ( ergot=सिकेलि ) की अपेक्षा भी ज्यादा फायदा करता है । गर्भावस्था की मिचली और वमनमें भी इससे लाभ होता है । - दर्द - दर्द के समय प्रसूताको मूर्च्छा आ जानेका भाव (nervous or
प्रसवका hysterical : स्नायविक या हिस्टीरिया के कारण ), गर्भाशयका मुँह कड़ा बना रहना। डॉ० हेरिंगका कहना है - सौरीमें पहले-पहल दर्द आरम्भ होनेके समय यदि जच्चाको कँपकँपी पैदा हो जाये ( खासकर अगर वह डरसे काँपती हो ) तो इससे बहुत फायदा होता है। सिमिसिफ्यूगाके साथ कॉलोफाइलमके दर्द का प्रभेद देखें।
सिमिसिफ्यूगा–प्रसवका दर्द बहुत देर तक स्थायी होता है, यहाँ तक कि पहली बार आरम्भ होनेके समय भी दर्द बहुत देर तक बना रहता है, दर्द तलपेटसे कमर में चला जाता है, गर्भाशयकी पेशियाँ कड़ी रहती हैं।
बहुत थोड़ी देर ठहरता है ( clonic ), दर्द नीचे जननेन्द्रियकी जड़की हड्डीको प्यूबिक - कॉलोफाइलम – इसका दर्द प्यूबिक अस्थिके ऊपर ( तत्तपेटके अस्थि कहते हैं विटपास्थि ) ठहरता है और वहाँ एक तरहका अकड़नका दर्द होता है, ऐंठनके दर्द की तरह दर्द और जरायुकी पेशी क्रमशः क्षीण हो जाती है- ऐसेमें ० या २x शक्तिके २-१ बूँदकी मात्रा में आध घण्टेके अन्तरसे प्रयोग करना चाहिये और गरम पानी बोतल में भरकर पेटपर सेंक दें।
- - वात - शरीरके सारे मांस-भरे स्थानोंमें वात, विशेषकर पैरकी पोटलीमें ( belly of the muscle ) दर्द ; कंधा, गर्दन, कमर, पीठ और पसलियोंके भीतर ( intercostal ) दर्द - यदि यह जरायुकी किसी भी तरह की बीमारी के साथ हो तो - ऐक्टिया और भी अधिक लाभदायक है। कॉलोफाइलम भी सिमिसिफ्यूगा के सदृश दवा है; जरायुकी बीमारीके साथ छोटी-छोटी सन्धियों में ( small joints ) वात होनेपर- इससे और अधिक लाभ होता है। सिमिसिफ्यूगाके वातका दर्द हिलने-डोलनेपर बढ़ता है; पर ब्रायोनिया की भाँति प्रत्येक बार हिलने-डोलनेपर नहीं बढ़ता। इसका दर्द बहुत कुछ रस टक्सकी तरह होता है और पहली बार हिलने के समय बढ़ता है, पर रस टक्समें – रोगी जितनी बार हिलता-डोलता है उतनी ही बार दर्द घटता है, सिमिसिफ्यूगा में – वैसा नहीं होता। कमरके बातमें- मैकरोटिनम लाभ करता है। नितम्ब और कमरकी हड्डीमें दर्द – उसका उरु तक उतरना । -
- ऐक्टिया स्पाइकेटा- हाथ-पैरकी अंगुलियों, कलाई, अंगूठों, छोटी सन्धि ( small joints ), हाथ-पैरके पोर इत्यादिका वात और सूजन, सूजनका रङ्ग लाल, उसमें बेहद तकलीफ - छूआ न जाना इत्यादि लक्षणों में इससे विशेष लाभ होता है। इसका दर्द- कभी-कभी जगह बदला करता है (कलाईके वात में यह सबसे अधिक लाभदायक है ) - जगह बदलनेवाले दर्दमें– के लि बाइक्रोम, कैलि सल्फ, पल्सेटिला, लैक कैनाइनम, मैंगेनम, लिडम, कैलमिया, रॉडोडेण्ड्रन, कॉलचिकम आदि भी फायदेमन्द हैं।
- खाँसी - प्रायः सूखी और कष्टकर खाँसी, रातमें बढ़ जाना, गलेमें सुरसुरी होकर खाँसी, स्नायविक खाँसी, बोलनेके समय खाँसीका बढ़ना, इसके साथ ही पीठ में दर्द और प्लुरोडाइनियाकी तरह ( कलेजेके बगल में सूई गड़ने और वातकी तरहका दर्द ) कलेजेके पास दर्द रहनेपर - सिमिसिफ्यूगा और भी लाभदायक है ( रैनानक्यूलस ) ।
स्नायुशूलका दर्द - डायफ्राम-पेशी (वक्षोदर मध्यस्थ पेशी) में शूलका दर्द, जरा जोरसे साँस लेने, खाँसने और सोनेपर भी दर्द बढ़ता है ( डायफ्राम का मध्य भाग अग्रखण्डके नीचे और दोनों सिरे ७वे जरके नीचे रहता है ) । आँखकी
बीमारी- आँखकी पुतली और भौंहोंके पास बहुत दर्द, उसके साथ ही माथेमें दर्द की प्रकृति धक्का देने का तीर बिंधने जैसी – ऐसा दर्द बायों आँखपर ही अधिक होता है।
" अनिद्रा–कॉफिया वगैरहकी तरह यह भी नींद न आने या अनिद्रा की एक महौषधि है। डॉ० टेलकटका कथन है कि जिन लोगोंमें पहले अफीम खानेकी आदत रही हो, उनकी अनिद्राकी बीमारीमें यह खासा फायदा करती है। बच्चोंको दाँत निकलनेके समय मस्तिष्क में उपदाह और अनिद्रामें ऐक्टिया लाभ करती है ।
सिमिसिफ्यूगाकी उग्रवीर्य औषधि है - मैकरोटिनम ( macrotinum )— सिमिसिफ्यूगाके लक्षण रहनेपर भी उससे फायदा न हो तो - मैकरोटिनम३x - ६ x ट्राइडरेशन या ६ठी शक्ति डिम्बकोष और जरायुकी बीमारीमें तथा बाधक के दर्द में मन्त्रकी तरह फायदा करती है। मैकरोटिनम कमरके दर्द में ( lumbago ) ज्यादा लाभदायक है। इससे प्रायः सब तरहका कमरका दर्द आरोग्य होता है।
भयानक दर्द, रोगीको कुछ पकड़कर खड़ा होना युपियनमें – कमरमें पड़ता है।
हृत्पिण्ड – एआइना पेक्टोरिस ( हृत्शूल ), हक्रिया एकाएक बन्द होकर श्वासमें कष्ट, असमान काँपती हुई नाड़ी। बायीं ओरके स्तनके भीतर व नीचे दर्द । ●
वृद्धि - छूनेपर, शरीर हिलानेपर; ठण्डी हवासे, गरम घरमें, रातमें, सवेरे और सन्ध्यामें, ऋतुसावके समय ( स्रावकी मात्राके अनुसार दर्दका घटनाबढ़ना ) ।
ह्रास – विश्राम करनेपर, निर्मल वायुसे, उत्तापसे और भोजन करनेके बाद। सम्बन्ध – जरायु और वातके दर्द में - कॉलोफाइलम, पल्स, लिलियम, सिपिया ।
कियानाशक – एकोन, बेप्टीसिया । – क्रियाका स्थितिकाल - ६-१२ दिन । क्रम – २४, ३० शक्ति ।
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